विरह-पदावली -सूरदास
(255) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) आज (वह) वंशी कौन बजायें? वे अक्रूर, जो क्रूर-निष्ठुर नहीं थे, क्रूर (निष्ठुर) कर्म करके (यहाँ से) व्रजराज को ले गये। (मथुरा जाकर श्रीकृष्ण ने) कंस, केशी और मुष्टिक का वध किया और (इस प्रकार) देवताओं का कार्य सिद्ध किया तथा उग्रसेन को राजा बनाकर सब (राजाओं) के मुकुटरूप से (सर्वश्रेष्ठ करके) स्थापित कर दिया। नन्दजी (भी) श्रीकृष्णचन्द्र को छोड़कर घर आ गये, (पर) हम उनके बिना (अब) कैसे जीवित रहें? अब हमारे लिये तो यही साज (उपाय) है कि अपने स्वामी के लिये हम कोई विषैली जड़ी खा लें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |