विरह-पदावली -सूरदास
(205) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है-) अरी सखी! ये मेघ (इस भाँति) गर्जना कर रहे हैं मानो क्रोध करके कामदेव चढ़ आया हो और उसी की सेना का यह (गर्जनरूप) कोलाहल बढ़ा हो तथा मयूर, कोकिल और पपीहे के शब्द रूप में उसकी विजय-दुन्दुभि बज रही हो। बिजली रूपी तलवार उसके हाथ में हैं, जिसके भय से हमारा सब शरीर कँप रहा है तथा मेघों की सेना के साथ उसका इन्द्रधनुष सजा हुआ है। (साथ ही वह काम) हम नारियों को अकेली (श्याम-हीन) करके और अपने कुल की नीति विस्मृत कर (यह चढ़ आया है, अतः मोहन तुम आओ!) अरे, तुम्हारे आने की अवधि के साथ ही ये सब शूरवीर (भी) हड़बड़ाकर (यहाँ से) भाग जायँगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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