विरह-पदावली -सूरदास
राग कान्हरौ (सूरदास जी के शब्दों में कोई अन्य गोपी कह रही है- सखी!) बार-बार ‘प्रियतम! प्रियतम!’ (कहकर) क्यों पुकारती है, (यह) प्रियतम का प्रेम तेरा प्राण ले लेगा। बार-बार नेत्रों में जल (अश्रु) क्यों भर लेती है, (इस प्रकार) नेत्र भर लेने से वेदना कैसे दूर होगी? बार-बार दीर्घश्वास क्यों लेती है? इससे शत्रु विरह की की दावाग्नि प्रज्वलित होगी। सुगन्ध और पुष्पों से सजी शय्या तथा माला छूने से (तो मेरा) हृदय हताश होकर उसी प्रकार जल जायगा जैसे गर्म राख को छूने से। अब मुख छिपाकर घर के भीतर बैठ जा; क्योंकि फिर चन्द्रमा उदय होगा। अरी सखी! अपने इन नेत्रों से चन्द्रमा को मत देखना; नहीं तो चन्द्रमा जल जायगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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