विरह-पदावली -सूरदास
यशोदा-वचन श्रीकृष्ण के प्रति सूरदास जी कहते हैं- यशोदा जी (श्यामसुन्दर के जाने की बात सुनकर) अत्यन्त व्याकुल हो गयीं और ‘अक्रूर जी! आपके लिये (यह क्या) उचित है कि जो आप हमारे बालकों को हरण कर (ले जा) रहे हैं ?’ ‘ये दोनों भाई (तो) हमारे जीवन हैं।’ इत्यादि कहकर रोहिणी माता भी रोने लगीं। वे पृथ्वी पर गिर पड़ती हैं, फिर अत्यन्त व्याकुल होकर उठती हैं और कहती हैं- ‘कोई (श्यामसुन्दर को) रोकता नहीं। (हाय!) जब से यह (अक्रूर) आया है, तब से वे भी निष्ठुर हो गये हैं। (दोनों भाई) घर भी नहीं आते, अरे! राजा के पास तुम्हारा क्या काम? हम तुम्हारे बिना मर जायँगी।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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