विरह-पदावली -सूरदास
राग जैतश्री (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) श्यामसुन्दर-जैसे प्रियतम कैसे भुलाये जा सकते हैं। मिलना दूर होते हुए भी चकोर का चित्त चन्द्र में ही बसता (आसक्त रहता) है; फिर भी (न मिलने के कारण वह) चित्त में पछताया करता है। (मछलियाँ और हंस-दोनों) जल में ही रहते हैं, जल से ही उत्पन्न होते हैं और जल के बिना म्लान हो जाते हैं; फिर भी हंस तो जल को छोड़कर मोती चुग लेता है; पर मछलियाँ (जल छोड़कर) उड़कर कहाँ जायँ ? (यही दशा हम सबकी है; क्योंकि) वही गोकुल है, वही गोवर्धन है, किंतु अब (वर्षा में व्रज पर गोवर्धन की) छाया कौन करे। यदि परदेशी मथुरा वासी श्रीकृष्ण प्रत्यक्ष प्रेम न करें, (तो पता नहीं) सुख किस देश में निवास करें। (घने) बादल पृथ्वी को अत्यन्त दुःखी देखकर वर्षा-ऋतु में (अवश्य) वर्षा करते हैं; अतः हे स्वामी! तुम्हारा दर्शन पाये बिना हमारे हृदय में दुःख कैसे सीमित रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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