विरह-पदावली -सूरदास
(112) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) श्यामसुन्दर से वियोग होने के कारण मैंने बहुत दुःख पाया। दिनोंदिन (उसकी) पीड़ा अत्यन्त असह्य होती जाती है, जिससे प्रत्येक पल वर्ष के समान व्यतीत होता है। (हम) सब व्रज की नारियाँ व्याकुल हो गयीं, किंतु (उनका) तनिक भी संदेश नहीं मिला। स्वामी! तुमसे मिलने के लिये (हमारे) नेत्रों ने (अश्रुओं की) प्रबल झड़ी लगा दी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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