विरह-पदावली -सूरदास
यशोदा-विलाप (सूरदास जी के शब्दों में माता कह रही है- व्रजराय!) मेरे प्राणों के जीवनधन को (मथुरा) छोड़कर (वहाँ से आप) क्या लेकर आये? (यह कहती हुई) बलराम और श्रीकृष्ण का नाम ले-लेकर व्रज के लोगों के देखते-देखते यशोदा जी मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पडीं। (फिर कुछ चेतना लौटने पर बोलीं-) श्यामसुन्दर के सामने रहते, (उनके न लौटने की) बात सुनकर (आपकी) शरीर से प्राण कैसे न छूटे! क्या आपने श्रीराम (के वियोग में दशरथ महाराज के प्राण त्यागने) की कथा नहीं सुनी? अहो! आपके मन में (लौटते हुए) लज्जा (भी) नहीं आयी। नन्दराय! आप (उस समय) विचारहीन और मन्दबुद्धि हो गये? अब क्षण-क्षण पर पश्चाताप करने से क्या होता है? व्रजराज! (तुम) फिर मथुरा जाओ और करोड़ों ठोस प्रयत्न करके मेरे (आनन्दघन) पुत्रों को ले आओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |