विरह-पदावली -सूरदास
राग बिहागरौ (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) श्यामसुन्दर के न रहने से ये बादल उमड़ आये हैं। आज मैंने स्वप्न में श्याम को देखा (जिससे मेरे) नेत्र (आँसुओं से) भर आये और उनका काजल बह गया। वे चंचल चपलतापूर्वक चित्त को सर्वथा चुरा लेते हैं। (इसलिये उनके स्मरण में ही) रात में जागते हुए मुझे सबेरा हो गया। स्वामी! आप (कब) मिलेंगे? आप तो व्रज को छोड़कर चले गये, अतः सब झंझट ही मिट गया (सर्वथा निश्चिन्त हो गये)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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