विरह-पदावली -सूरदास
पंथी-वचन देवकी के प्रति (पथिक-नारी कह रही है-) मैं यहाँ गोकुल से ही आयी हूँ। मैं आपके चरण स्पर्श करती हूँ, मुझे यशोदा जी ने भेजा है। आपसे श्रीव्रजराज ने प्रणाम और नन्दपत्नी ने चरण स्पर्श कहा है (और उन्होंने कहा है कि आप) मेरी ओर से बलराम तथा श्रीकृष्ण को भुजाओं में भर तथा हृदय से लगाकर मिलना। (उन्होंने) और भी एक संदेश कहा है, यदि आप आज्ञा दें तो आपको सुनाऊँ- (वह यह कि) ‘किसी प्रकार आपके पुत्र का हम एक बार फिर दर्शन पा जायँ। यह तो संसार में विख्यात है कि आप श्यामसुन्दर की माता और मैं श्यामसुन्दर की धाय हूँ; अतः कृपा करके इसी सम्बन्ध से उन्हें (एक बार यहाँ) भेज दीजिये, जिससे (हम) उनका दर्शन पाकर जीवित रहें।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |