विरह-पदावली -सूरदास
राग नट (कोई गोपी कह रही है- सखी!) यदि नेत्रों में नींद आ जाय तो स्वपन में ही (श्यामसुन्दर को) देख लूँ; (किंतु) (नींद आती नहीं, अतः) वियोगिनी व्रजनाथ के बिना, बताओ, क्या उपाय करे। चन्द्रमा की चाँदनी है, शीतल-मन्द वायु चलता है, फिर भी शय्या सदा जलती रहती है। क्या करूँ, किसी प्रकार मेरा मन धैर्य धारण नहीं करता। सूरदास जी कहते हैं कि वियोगिनी अनेक उपाय करती है, किंतु उसके मन की इच्छा पूरी होती नहीं। परम शीतल श्रीकृष्णचन्द्र के बिना इसके शरीर का संताप कौन दूर कर सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |