विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी! सच-सच बता,) श्यामसुन्दर ने अब किससे प्रीति जोड़ी है? वे भला, किसके हुए हैं, (आगे) किसके होंगे और किसके प्रेम की रस्सी में बँधे हैं। त्रेतायुग में उन्होंने एक पत्नी व्रत किया; पर उस (पत्नी) को भी विलाप करती छोड़ दिया तथा शूर्पणखा वन में उनसे विवाह करने आयी तो उसकी नाक काटकर उसे लौटा दिया। जिन्होंने वेदों की मर्यादा तोड़कर दूध पीते हुए (धाय के समान) पूतना को मार दिया और व्रजरानी यशोदा जी से बहुत ही प्रीति बढ़ाकर उसे भी एक क्षण में तोड़ दिया। गोपियों को आर्यपथ (कुलीनता के मार्ग) से हटाकर अपने स्वार्थ के लिये भुलावा दिया और (उनसे) अपना काम पूरा करके पतंग की डोरी के समान (उनके प्रेम की डोरी भी) तोड़ दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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