कमल नैन अपनै गुन -सूरदास

विरह-पदावली -सूरदास

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राग मारू
(184)
कमल-नैन अपनै गुन, मन हमार बाँध्यौ ।
लागत तौ जान्यौ नहिं, विषम बान साध्यौ ।।
कठिन पीर बेध्यौ सर, मारि गयौ माई ।
लागत तौ जान्यौ नहिं, अब न सह्यौ जाई ।।
मंत्र-तंत्र केतिक करौ, पीर नाहिं जाई ।
है कोउ, उपचार करै, कठिन दरद माई ।।
कैसैंहु नँदलाल पाउँ, नैंक मिलौं धाई ।
सूरदास प्रेम-फंद तोरयौ नहिं जाई ।।

(सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) कमल लोचन (श्यामसुन्दर) ने अपने गुणों की डोरी से (हमारा) मन बाँध लिया है। उन्होंने (प्रेम का) जो कठोर बाण संधान किया, उसे लगते तो (हमने) जाना नहीं। किंतु सखी! वे तो बाण से बींधकर चले गये और अब हमें दारुण पीड़ा हो रही है। (उस बाण के) लगते समय तो हमने जाना नहीं, पर अब (पीड़ा) सही नहीं जाती। कितना ही मन्त्र-तन्त्र करो, यह पीड़ा दूर नहीं होती। सखी! कोई ऐसा नहीं, जो इस कठिन दर्द की दवा कर सके। (इस का उपचार तो यही है कि) किसी प्रकार भी नन्दलाल थोड़ी देर को भी मिल जायँ तो दौड़कर उनसे जा मिलूँ। यह प्रेम का पाश (फंदा) मुझसे तोड़ा नहीं जाता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विरह पदावली -सूरदास
पद संख्या पद का नाम
1. सुन्यौ ब्रज-लोग कहत यह बात -सूरदास
2. ब्याकुल भए ब्रज के लोग -सूरदास
3. लैन कोउ आयौ -सूरदास
4. चलत जानि चितवतिं ब्रज जुवतीं -सूरदास
5. मधुबन चलन कहत हैं सजनी -सूरदास
6. सब मुरझानीं री -सूरदास
7. अनल तैं बिरह-अगिनि अति ताती -सूरदास
8. स्याम गऐ सखि प्रान रहैंगे -सूरदास
9. मन गह्वर मोहि उतर न आयौ -सूरदास
10. बहुत दुख पैयत हैं इहिं बात -सूरदास
11. इन्हैं कहा मधुपुरी पठाऊँ -सूरदास
12. यह अक्रूर क्रूर भयौ हम कौं -सूरदास
13. कैसैं जिऐ बदन बिनु देखें -सूरदास
14. बारंबार निरखि सुख मानति -सूरदास
15. नहिं कोहु स्यामहिं राखै जाइ -सूरदास
16. जसोदा बार-बार यौ भाषै -सूरदास
17. किहिं अवलंबन रहिहैं प्रान -सूरदास
18. मोहन इतौ मोह चित धरिऐ -सूरदास
19. जसुमति अतिहीं भई बिहाल -सूरदास
20. कहा अक्रूर ठगौरी लाई -सूरदास
21. सकुचन कहि न सकति काहू सौं -सूरदास
22. अबहीं सखी देखि आई है -सूरदास
23. कहँ वह सुख -सूरदास
24. बल मोहन बैठे रथ -सूरदास
25. बिनु परबै उपराग आजु हरि -सूरदास
26. आइ अक्रूर चले लै स्यामहि -सूरदास
27. मनैं कुसुम निरमायल दाम -सूरदास
28. गोपालहि राखहु मधुबन जात -सूरदास
29. मोहन नैकु बदन तन हेरौ -सूरदास
30. रही जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ी -सूरदास
31. चलतहुँ फेरि न चितए लाल -सूरदास
32. बिछुरत श्रीब्रजराज आजु -सूरदास
33. नंद नंदन के चलत सखी हौं -सूरदास
34. वह देखौ रथ जात -सूरदास
35. वह देखौ रथ जात -सूरदास
36. निकसे बचन सुनाइ सखी री -सूरदास
37. चलत न फेंट गही मोहन की -सूरदास
38. अब वे बातै ई ह्याँ रही -सूरदास
39. वह देखौ रथ जात -सूरदास
40. आज रैनि नहिं नींद परी -सूरदास
41. भयौ कठोर बज्र तैं भारी -सूरदास
42. पिय-समीप-सुख की सुधि आवै -सूरदास
43. सुंदर बदन सुख-सदन स्याम कौ -सूरदास
44. री मोहि भवन भयानक लागै माई -सूरदास
45. कहा हौं ऐसैं ही मरि जैहौं -सूरदास
46. गुपालराइ हौं न चरन तजि जैहौं -सूरदास
47. मेरे मोहन तुमहिं बिना नहिं जैहौं -सूरदास
48. नंदहि कहत हरि ब्रज जाहु -सूरदास
49. गोप सखा हरि बोधि पठाए -सूरदास
50. बार बार मग जोवति माता -सूरदास
51. नंदहि आवत देखि जसोदा -सूरदास
52. नंद ब्रजहिं आए -सूरदास
53. उलटि पग कैसैं दीन्हौ नंद -सूरदास
54. दोउ ढोटा गोकुल नाइक मेरे -सूरदास
55. नंद कहौ हो कहँ छाँड़े हरि -सूरदास
56. यह मति नंद तोहि क्यौ छाजी -सूरदास
57. फूटि न गईं तुम्हारी चारौ -सूरदास
58. नंद हरि तुम्ह सौं कहा कह्यौ -सूरदास
59. मेरौ अति प्यारौ नंद नंद -सूरदास
60. कहाँ रह्यौ मेरौ मन-मोहन -सूरदास
61. तब तू मोरिबोई करति -सूरदास
62. राम कृष्न कहि मुरछि परी धर -सूरदास
63. कैसैं प्रान रहे सुत-बिछुरत -सूरदास
64. तब तैं मिटे सब आनंद -सूरदास
65. अब वह सुरति होत कित राजनि -सूरदास
66. जसोदानंदन सुख संदेह दियौ -सूरदास
67. अब वह सुरति होत कित राजनि -सूरदास
68. चूक परी हरि की सेवकाईं -सूरदास
69. कहौ कंत कहँ तज्यौ स्याम कौं -सूरदास
70. लै आवहु गोकुल गोपालहि -सूरदास
71. सराहौं तेरौं नंद हियौ -सूरदास
72. सूल होत नवनीत देखि मेरे -सूरदास
73. ब्रज तजि गए माधौ कालि -सूरदास
74. नंद ब्रज लीजै ठोक बजाइ -सूरदास
75. माई हौं किन संग गई -सूरदास
76. हौं तौ माई -सूरदास
77. तुम्ह बिन इहाँ कुँवर बर मेरे -सूरदास
78. वह नातौ नहिं मानत मोहन -सूरदास
79. मोहन के मुख जोग -सूरदास
80. मेरौ कहा करत ह्वैहै -सूरदास
81. हौ तौ तिहारे सुत की -सूरदास
82. अबकी बेर बहुरि फिरि आवहु -सूरदास
83. कैसै टेब मिटति मन मोहन आँगन -सूरदास
84. देवकि माइ पाँइ लागति हौ -सूरदास
85. जौ पै राखति हौ पहिचानि -सूरदास
86. मेरे कुँवर कान्ह बिन सब कुछ -सूरदास
87. यह प्रीतम सौ प्रीति निरंतर -सूरदास
88. लोग सब कहत सयानी बातैं -सूरदास
89. जिहिं बिधि मिलनि मिलैं वै माधौ -सूरदास
90. कहँ वह प्रीति -सूरदास
91. प्रीति करि दीन्ही गरें छुरी -सूरदास
92. आई उघरि कनक-कलई सी -सूरदास
93. सेवा करत करी उन्ह ऐसी -सूरदास
94. तब तक डोरि लगाइ -सूरदास
95. सुनि री सखी -सूरदास
96. अनाथन की सुधि लीजै -सूरदास
97. देखियति कालिंदी अतिकारी -सूरदास
98. नाहिन मोर चंद्रिका माथें -सूरदास
99. दूरिहिं तैं सिंघासन बैठे -सूरदास
100. कह परदेसी कौ पतियारौ -सूरदास
101. कह परदेसी कौ -सूरदास
102. तातैं मन इतनौ दुख पावत -सूरदास
103. मदन गुपाल बिना या ब्रज की -सूरदास
104. अब वै बातैं उलटि गईं -सूरदास
105. अब वै मधुपुरी हैं माधौ -सूरदास
106. अब हौं कहा करौं री माई -सूरदास
107. इहिं बिरियाँ बन तैं ब्रज आवत -सूरदास
108. मोहन जा दिन बनहिं न जात -सूरदास
109. ते गुन बिसरत नाहीं उर तैं -सूरदास
110. इतने जतन काहे कौं किए -सूरदास
111. जाहि लगै सोई पै जानै -सूरदास
112. बिछुरें स्याम बहुत -सूरदास
113. यह कुमया जौ तबहीं करते -सूरदास
114. हरि हम तब काहे कौं राखी -सूरदास
115. दुसह बियोग स्याम सुंदर -सूरदास
116. बरष होत न एक पल सम -सूरदास
117. हरि न मिले माइ -सूरदास
118. तुम बिनु नंद सुवन इहिं गोकुल -सूरदास
119. सुमरत प्रीति लाज लागति है -सूरदास
120. ऐसौ कोउ नाहिंनै सजनी -सूरदास
121. बहुरौ देखिबौ इहिं भाँति -सूरदास
122. कब देखौं इहिं भाँति कन्हाई -सूरदास
123. यह जिय हौंसै पै जु रही -सूरदास
124. ब्रज में वै उनहार नहीं -सूरदास
125. कहाँ लौं मानौं अपनी चूक -सूरदास
126. कहा दिन ऐसैं ही चलि जैहैं -सूरदास
127. तिनकौ कठिन करेजौ सखि री -सूरदास
128. कहा कहौं या ब्रज बसि हरि बिनु -सूरदास
129. गोपालहि पावौं धौं किहिं देस -सूरदास
130. फिरि ब्रज आइऐ गोपाल -सूरदास
131. फिरि ब्रज बसहु गोकुलनाथ -सूरदास
132. काहें पीठि दई हरि मोसौं -सूरदास
133. हरि से पीतम क्यों बिसराहिं -सूरदास
134. प्रीतम बिनु ब्याकुल अति रहियत -सूरदास
135. बारक जाइयौ मिलि माधौ -सूरदास
136. सखी इन नैननि तैं घन हारे -सूरदास
137. नैना सावन भादौं जीते -सूरदास
138. सदा रहति पावस रितु हम पै -सूरदास
139. तब तैं नैन अनाथ भए -सूरदास
140. नैनन नाध्यौ है झर -सूरदास
141. अति रस लंपट मेरे नैन -सूरदास
142. हरि दरसन कौं तरसति अँखियाँ -सूरदास
143. कैसै रहै दरस बिनु देखे -सूरदास
144. जा दिन तै हरि चले मधुपुरी -सूरदास
145. सुंदर स्याम पाहुनै कै मिस -सूरदास
146. लोचन लालच तैं न टरैं -सूरदास
147. लोचन चातक ज्यौं हैं चाहत -सूरदास
148. सींचत नैन नीर के सजनी -सूरदास
149. इन लोभी नैननि के काजैं -सूरदास
150. बिछुरत उमँगि नीर भरि आए -सूरदास
151. हौं तौं दिन कजरा मैं दैंहौं -सूरदास
152. कहा इन्ह नैननि कौ अपराध -सूरदास
153. नैनन नींद परत नहिं सजनी -सूरदास
154. ह्याँ हैं स्याम हमारे प्रीतम -सूरदास
155. देखि सखी उत है वह गाँउ -सूरदास
156. लिखि नहिं पठवत हैं -सूरदास
157. देखि देखि मधुबन की बाटहि -सूरदास
158. वा मधुबन की राह -सूरदास
159. जब तैं बिछुरे कुंज बिहारी -सूरदास
160. सपनेहू में देखिऐ -सूरदास
161. इतनी दूरि गोपालहि माई -सूरदास
162. जहँ वै स्याम मदन मूरति -सूरदास
163. सपनें हरि आए -सूरदास
164. मैं जान्यौ री आए हैं हरि -सूरदास
165. जौ जागौं तौ कोऊ नाहीं -सूरदास
166. बचनन हौं अकुलाइ लई री -सूरदास
167. सुपने हूँ के सुख न सहि सकी -सूरदास
168. अब सखि नींदौ तौ जु गई -सूरदास
169. तन सिंगार कछू देखति नहिं -सूरदास
170. हम कौं सपनेहू मैं सोच -सूरदास
171. हरि बिन बैरिन नींद बढ़ी -सूरदास
172. सुनौ सखी -सूरदास
173. हम कौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास
174. पिय बिनु नागिन कारी रात -सूरदास
175. तिरिया रैन घटें सचु पावै -सूरदास
176. कैसैं मिलौं स्यामसुंदर कौं -सूरदास
177. बहुरि कब आवैंगे -सूरदास
178. वे नहिं आए प्रान पियारे -सूरदास
179. बहुरौ गोपाल मिलैं -सूरदास
180. हरि आवहिं किहिं हेत -सूरदास
181. चलत न माधौ की गही बाहैं -सूरदास
182. जब हरि रथ चढ़ि चले मधुपुरी -सूरदास
183. मेरौ मन वैसिऐ सुरति करै -सूरदास
184. सहियत कठिन सूल निसि बासर -सूरदास
185. कमल नैन अपनै गुन -सूरदास
186. हरि जु हम सौं करी -सूरदास
187. मति कोउ प्रीति कें फंद परै -सूरदास
188. प्रीति पतंग करी पावक सौं -सूरदास
189. जौ पै हिलग हिए मैं है री -सूरदास
190. प्रीति तौ मरिबौई न बिचारै -सूरदास
191. प्रीति बटाऊ सौं कत करिऐ -सूरदास
192. बिछुरन जनि काहू सौं होइ -सूरदास
193. तब काहे कौं भए -सूरदास
194. तब सत कलप पलक सम जाते -सूरदास
195. जनि कोउ काहू कें बस होहि -सूरदास
196. यह सरीर नाहिन मेरौ -सूरदास
197. हम तौ भई जग्य के पसु ज्यौं -सूरदास
198. बोलि सखी चातक -सूरदास
199. बहुरि न कबहूँ -सूरदास
200. ब्रज मैं दोउ बिधि -सूरदास
201. ब्रज तैं पावस पै न टरी -सूरदास
202. ये दिन रूसिबे के नाहीं -सूरदास
203. अब बरषा कौ आगम -सूरदास
204. सँदेसनि मधुबन कूप -सूरदास
205. माई री ये मेघ गाजैं -सूरदास
206. ब्रज पै बदरा आए गाजन -सूरदास
207. देखियत चहुँ दिसि -सूरदास
208. ब्रज पै सजि पावस -सूरदास
209. सखी री पावस -सूरदास
210. बदरिया बधन बिरहिनी -सूरदास
211. स्याम बिना उनए ये -सूरदास
212. बरु ए बदरौ बरषन -सूरदास
213. बहुरि हरि आवहिंगे किहि -सूरदास
214. किधौं घन गरजत नहिं उन -सूरदास
215. घटा मधुबन पर बरषै -सूरदास
216. देखौ माई स्याम सुरति -सूरदास
217. तुम्हारौ गोकुल -सूरदास
218. ऐसी जो पावस रितु प्रथम -सूरदास
219. आज बन बोलन लागे मोर -सूरदास
220. आज बन बोलन लागे मोर -सूरदास
221. सखी री बूँद अचानक -सूरदास
222. सावन माई स्याम बिना -सूरदास
223. गगन सघन गरजत भयौ -सूरदास
224. आजु घन स्याम की -सूरदास
225. कैसैं कै भरिहैं री -सूरदास
226. बरषा रितु -सूरदास
227. घन गरजत माधौ -सूरदास
228. ऐसे बादर ता दिन -सूरदास
229. जो पै नंद सुवन -सूरदास
230. अब ब्रज नाहिंन -सूरदास
231. मानौ माई सबनि -सूरदास
232. सखि कोउ नई बात -सूरदास
233. बहुरि बन बोलन -सूरदास
234. इहिं बन मोर नहीं ये -सूरदास
235. आज बन मोरन गायौ आइ -सूरदास
236. सिखिनि सिखर चढ़ि -सूरदास
237. घन गरजत बरज्यौ -सूरदास
238. कोउ माई बरजै -सूरदास
239. रहु रहु रे बिहँग -सूरदास
240. बहुरि पपीहा बोल्यौ -सूरदास
241. सारँग स्यामहि सुरति -सूरदास
242. सखी री चातक मोहि -सूरदास
243. चातक न होइ -सूरदास
244. अब मेरी को -सूरदास
245. बहुत दिन जीवौ -सूरदास
246. हौं तौ मोहन के बिरह जरी रे -सूरदास
247. जौ तू नैंकेहूँ उड़ि -सूरदास
248. कोकिल हरि कौ बोल -सूरदास
249. सुनि री सखी समुझि -सूरदास
250. अब यह बरषौ बीति -सूरदास
251. सरद समैं हूँ स्याम -सूरदास
252. गोबिंद बिनु कौन हरै -सूरदास
253. सबै रितु औरै -सूरदास
254. मैं सब लिखि सोभा -सूरदास
255. मुरली कौन बजावै -सूरदास
256. हरि बिनु मुरली -सूरदास
257. माई बहुरि न बाजी -सूरदास
258. छूटि गई ससि -सूरदास
259. यह ससि सीतल -सूरदास
260. सखि कर धनु लै -सूरदास
261. हर कौ तिलक हरि -सूरदास
262. या बिनु होत कहा -सूरदास
263. सिंधु मथत काहें बिधु काढ़ौ -सूरदास
264. दूरि करहि बीना कर -सूरदास
265. बिधु बैरी सिर पै बसै -सूरदास
266. कोउ माई बरजै री -सूरदास
267. माई मोकौं चंद लग्यौ -सूरदास
268. अब हरि कौन सौं -सूरदास
269. अब या तनहि राखि -सूरदास
270. हमहि कहा सखि तन के -सूरदास
271. जियहिं क्यौ कमलिनि -सूरदास
272. ऐसौ सुनियत है द्वै -सूरदास
273. ऐसौ सुनियत -सूरदास
274. काहे कौं पिय पियहि रटति हौ -सूरदास
275. अब हरि निपटहिं -सूरदास
276. हौं कछु बोलति -सूरदास
277. बहु दिन ऐसौइ हौ री -सूरदास
278. माधौ दरसन की -सूरदास
279. सखि री बिरह यह -सूरदास
280. तउ गुपाल गोकुल -सूरदास
281. उन्ह ब्रजदेव नैकु -सूरदास
282. स्याम बिनोदी रे -सूरदास
283. कहौ री जो कहिबे -सूरदास
284. बिछुरे री मेरे -सूरदास
285. हरि परदेस बहुत -सूरदास
286. हमारे हिरदैं कुलिसहु -सूरदास
287. एक द्दौस कुंजन -सूरदास
288. हौं जानौं माधौ -सूरदास
289. नाहिंनैं अब ब्रज -सूरदास
290. ऐसे समय जो हरि -सूरदास
291. ब्रज कहा -सूरदास
292. हरि बिन कौन -सूरदास
293. किते दिन हरि दरसन -सूरदास
294. बिरह भर्यौ घर -सूरदास
295. जौ पै कोउ माधौ -सूरदास
296. सुरति करि ह्याँ की -सूरदास
297. हरि कहँ इते दिन -सूरदास
298. यह दुख कौन -सूरदास
299. गोबिंद अजहूँ नहिं आए -सूरदास
300. हम सरषा ब्रजनाथ -सूरदास
301. तुम्हारी प्रीति -सूरदास
302. माई वै दिन इहिं -सूरदास
303. हरि कौ मारग दिन -सूरदास
304. बिनु माधौ राधा तन -सूरदास
305. कर कपोल -सूरदास
306. सबै सुख लै जु गए -सूरदास
307. करिहौ मोहन -सूरदास
308. उन्ह कौं ब्रज बसिबौ -सूरदास
309. तब तैं बहुरि न कोऊ -सूरदास
310. बहुरौ हो ब्रज बात -सूरदास
311. तुम्हरे देस कागद -सूरदास
312. पथिक कह्यौ ब्रज -सूरदास
313. हमारे हरि चलन -सूरदास
314. हम तैं कमल नैन -सूरदास
315. नैना भए अनाथ -सूरदास
316. अब निज नैन अनाथ -सूरदास
317. उती दूर तैं को -सूरदास
318. हौं कैसें के दरसन -सूरदास
319. मानौ बिधि अब उलटि -सूरदास
320. आयौ नहिं माई -सूरदास
321. तातैं अति मरियत -सूरदास
322. जौ पै लै जाइ कोउ -सूरदास
323. उघरि आयौ परदेसी -सूरदास
324. माई री कैसैं बनै -सूरदास
325. सुनियत कहुँ द्वारिका -सूरदास
326. दधि सुत जात हौ -सूरदास
327. बीर बटाऊ पाती -सूरदास
328. स्याम बिनु भई सरद -सूरदास
329. ब्रज पै मंडर करत -सूरदास
330. ब्रज पै बहुरौ लागे -सूरदास
331. अब मोहि निसि देखत -सूरदास
332. माधौ या लगि है -सूरदास
333. हम तौ इतनें ही -सूरदास

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