विरह-पदावली -सूरदास
(29) (माता कह रही है-) मोहन! तनिक मेरे मुख की ओर तो देखो, मेरा तुम्हारे साथ जो माता का सम्बन्ध है, उसकी रक्षा करो। मदनगोपाल लाल! (मेरी ओर) तनिक मुख तो घुमा लो, सुन्दर रथ पर पीछे चढ़ना। देखो (तुम्हारे बिना) व्रज में अँधेरा हो रहा है, (अतः) लौट आओ। खड़े होकर वियोग के समय की भेंट (अंकमाल) दो और अपने जन्म के ग्राम इस व्रज को देखो। श्यामसुन्दर! ‘गोप कुमारों! अब सब अपनी-अपनी गायें घेर लो’- यह कहकर उन्हें गायें सँभला दो। सूरदास जी कहते हैं कि उस समय (माता के) प्राण नन्द जी के बहुत प्रयत्न करने (समझाने) के कारण नहीं गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |