विरह-पदावली -सूरदास
(222) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) श्याम के बिना श्रावण का महीना कैसे बिताया जायगा? (इन) बादलों को देखकर (मन में) पीड़ा उत्पन्न होती है और चतुर कन्हैया के बिना मैं मरी जा रही हूँ। सखी! काजल, तिलक (चन्दन), ताम्बूल और तेल-इन सबका उपयोग छोड़ देना चाहिये; क्योंकि सूनी शय्या सिंह के समान (भयानक) लगती है और (उसे देख-देखकर) बिना अग्नि के ही मैं जली जाती हूँ। सखी! आज मन में ऐसी बात आती है कि इस ग्राम और इस देश को छोड़ दूँ। स्वामी से मिलने के लिये करोड़ों प्रकार से मन को समझा रही हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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