विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! इस शरीर के रहते कहीं विधाता वह दिन ला दे कि श्यामसुन्दर के साथ हम युवतियों का समूह आनन्द क्रीड़ा करता हो। (उस समय) यदि अक्रूर आ जायँ तो (हम) उन्हें जड़सहित परमगति को भेज दें, (क्योंकि) हमारे प्राणनाथ कमल लोचन वंशी जो बजाते होंगे। क्या कहूँ, कहने में बहुत कठिन बात है और मेरा कहना मानेगा कौन? यह प्रेम की पीड़ा तो वियोग प्राप्त होने पर ही जानी जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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