विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) परदेशी का विश्वास क्या, (वे तो हमसे) प्रेम बढ़ाकर मथुरा चले गये और हमें वियोग का भारी दुःख दे गये। जैसे जल से रहित (निकाली हुई) मछली तड़पती है, वैसे ही उनके बिना हमारे प्राण व्याकुल हो रहे हैं। (आज) स्वामी के दर्शनरूपी दीपक के बिना (व्रजरूपी) भवन में अन्धकार हो गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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