विरह-पदावली -सूरदास
(246) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है-) अरे पपीहे! मैं तो श्याम के वियोग में दग्ध हूँ, तू जली हुई को क्यों जलाता है? अरे पक्षी पपीहे! तू बड़ा पापी है जो आधी रात को ‘पी कहाँ, पी कहाँ’ करके पुकारता है। उत्तम योधा का-सा कोई काम तो तूने किया नहीं, किंतु मरी हुई अबलाओं को बाणों की मूठ से मारता है। अरे दुष्ट! तू जो दूसरों को सताता है तो क्या अपने मन में यह नहीं जानता कि ये दुःख हैं? सारा संसार सुखी है, पर तू जल के बिना दुःखी रहता है; फिर भी दूसरे के हृदय की पीड़ा का विचार नहीं करता। श्यामसुन्दर के वियोगी व्रज में तू बोलता है! (अरे, इस जन्म में तो दुःखी है ही, यह पाप करके) अपना अगला जन्म भी क्यों बिगाड़ता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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