विरह-पदावली -सूरदास
(206) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी! अब तो) व्रज पर बादल आकर गर्जने लगे हैं। सखी! श्यामसुन्दर के क्रोधवश मथुरा में बस जाने की बात सुनकर कामदेव सेना सजाने लगा है। कण्ठ और नेत्र के छिद्रों से जल (अश्रु) वर्षा हो रही है (जिससे प्राण निकलने के ये मार्ग अवरुद्ध हो गये हैं तथा) पपीहे और कोकिल के मुख से उसके विजय-वाद्य बज रहे हैं, चारों ओर से शरीर को वियोग ने घेर लिया है, अतः हम कैसे भाग सकती हैं। श्यामसुन्दर दूसरों की पीड़ा समझने वाले कहे जाते हैं और विपत्ति में हमारे काम भी आये हैं; किंतु अब उन श्रीपति की यह महिमा हो गयी कि (हमें छोड़कर) मथुरा में सुशोभित होने लगे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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