विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) यह पपीहा नहीं है, (इस रूप में) यह तो कोई वियोगिनी स्त्री है, जो अब भी रात में अपने प्रियतम का स्मरण करके ‘पी कहाँ, पी कहाँ’ करती झूठ-मूठ (अपने) मुख में (वर्षा का) जल माँगती है। सखी! देखो, इसका शरीर अत्यन्त दुर्बल है, (फिर भी) रात-दिन यही शब्द पुकारकर रटती रहती है। इस विचारे पशु (पक्षी) का प्रेम तो देखो कि दूसरे जन्म में भी हार नहीं मानता। अब पति के बिना यह ऐसी लगती है, जैसे जल के बिना सरोवर शोभित (शून्य) दिखायी पड़ता हो। हे मुरारी! यदि कृपा करके आप न मिले तो समझ लो कि यही दशा गोपियों की भी होगी (हम भी जन्म-जन्म इसी प्रकार तुम्हारा नाम रटेंगी)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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