विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) ऐसा सुना जाता है कि इस वर्ष (एक नाम के) दो महीने (पुरुषोत्तममास) हैं, हे चतुरशिरोमणि स्वामी! इतने में ही सब बात समझ लेना। आपने आने को कहा था, पर बहुत दिन लगा दिये, (यह तो) पीछे से पकड़ना (छल) हुआ। इतना ही नहीं, हमको छोड़ आपने कुब्जा में मन लगा लिया, यह कौन-सा वैदिक मार्ग है? इतने पर भी संतोष नहीं, सताने के लिये पीछे पड़ गये हो। अतः स्वामी! अपनी बात पूरी कीजिये, दस दिन (हमने आपकी) शाख मान ली (आपकी प्रमाणिकता पर विश्वास कर लिया)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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