विरह-पदावली -सूरदास
राग बिहागरौ व्रज के लोग व्याकुल हो गये; (किंतु) श्यामसुन्दर, जो परिपूर्ण ब्रह्म एवं योगी हैं, (अपने मन में) इनकी व्याकुलता पर तनिक भी विचार नहीं लाते-उनकी व्याकुलता पर ध्यान नहीं देते। भला इनकी कौन माता, कौन पिता, कौन स्वामी और कौन स्त्री है- ये दोनों भाई (व्रज के) नित्य नवीन प्रेम को भूलकर अक्रूर के साथ हँस रहे हैं। कोई कहता है- ‘यह यहाँ क्यों आ गया- जिसका नाम (अक्रूर नहीं) क्रूर है? सबेरे यह सूरदास स्वामी और साथ ही बलराम जी को ले जायगा।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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