विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) प्रेम करके किसी ने भी सुख नहीं पाया। पतिंगे ने अग्नि से प्रेम किया और (उसमें गिरकर) अपने प्राणों को जला डाला। (जन्म से ही) भौंरों ने कमल से प्रेम किया तो (उसने रात्रि में अपने) सम्पुट में (उसे) पकड़ लिया (बंद कर लिया)। इसी प्रकार मृग ने संगीत-ध्वनि से प्रेम किया तो उसे सम्मुख (छाती पर) बाण सहना पड़ा। इसी प्रकार हमने जो माधव से प्रेम किया तो जाते समय भी उन्होंने हमसे कुछ कहा नहीं। प्रभु के बिना हम दुःख भोग रही हैं, जिससे हमारे नेत्रों द्वारा आँसू बहते रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |