विरह-पदावली -सूरदास
नन्द-व्रजागमन नन्द जी को आते देखकर यशोदा जी उन्हें लेने आगे गयीं, वे कन्हैया को लेने के लिये चित्त में अत्यन्त आनन्दपूर्ण होती हुई अति आतुर गति से चली; किंतु (नन्द जी की) गर्दन झुकी और (उन्हें) कन्हैया के बिना देखकर बोलीं- ‘मेरे माखन चोर को तुमने कहाँ छोड़ दिया?’ उस समय व्रज की ऐसी दशा हुई, मानो सरोवर में कमलों को पालेने नष्ट कर दिया हो। गर्ग जी ने तब (नामकरण के समय) जो कथा कहकर सुनायी थी (कि श्रीकृष्ण-बलराम वसुदेव जी के पुत्र हैं) वह अब प्रकट हो गयी। यशोदा जी फिर बोलीं-मोहन (मेरे पास) बार-बार आता और मथानी एवं डोरी पकड़कर मुझसे (मक्खन के लिये) झगड़ता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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