विरह-पदावली -सूरदास
(241) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) पपीहे! इस बार श्यामसुन्दर को (व्रज का) स्मरण कराना। जहाँ नन्दनन्दन सोये हुए हों, वहाँ उच्च स्वर से (पी कहाँ) बोलकर उन्हें सुनाना कि ‘गर्मी बीत गयी, वर्षा-ऋतु आ गयी और सबके चित्त में उमंग है; किंतु आपके बिना व्रजवासी लोग ऐसे घूमते (भटकते) हैं, जैसे केवट के बिना नौका।’ मोहन तुम्हारा कहना मान लेंगे। उनके चरण पकड़कर (प्रार्थना करके) ले आओ। अबकी बार हमारे स्वामी को लाकर आँखों से दिखला दो (उनका दर्शन करा दो)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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