विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) मिलकर बिछुड़ने की वेदना अलग ही (बहुत दारुण) हुआ करती है, यह वियोग की अत्यन्त दारुण पीड़ा जिसे लगती (होती) है, वही (उसे) जानता है। जब ब्रह्मा ने यह (वियोग की) रचना रची (बनायी) थी, तभी उसका कोई प्रतीकार क्यों नहीं निश्चित किया और हमारे स्वामी ने हमें जीवनदान क्यों दिया, जन्मते ही मार क्यों नहीं डाला ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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