विरह-पदावली -सूरदास
(249) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी (कोकिल)! तू मेरी शिक्षा सुन और समझ ले। जहाँ जगत के शिरोमणि श्रीयदुनाथ निवास करते हैं, वहाँ एक बार फेरी लगा आ। (अरी) कोकिल! तू उत्तम कुल में उत्पन्न हुई है, बुद्धि की चतुर है और वियोगिनियों की पीड़ा जानती है; (अतएव वहाँ) उपवन में बैठकर, उत्तम वाणी बोलकर और उनको अपना शब्द सुनाकर हमें दासी (कृतज्ञ) बना ले। तू श्यामसुन्दर को सुनाकर यह प्रत्यक्ष (स्पष्ट) कहना कि (व्रज की) अबलाओं को शत्रु कामदेव ने घेर लिया है। यह पूरी पृथ्वी हमने बुद्धि की आँख से देख ली, (यहाँ) तेरे समान (दूसरी) कोई उपकार करने वाली नहीं है। (जो) प्राणों के मूल्य पर भी नहीं मिलती, यह सुयश की ढेरी बिना मूल्य के बिक रही है। हमारे स्वामी को तू व्रज में ले आ, (मैं) तेरी मनोहर कीर्ति (सदा) गाती रहूँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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