विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (एक गोपी कह रही है- सखी!) आज मेघ श्याम के रूप के समान हैं। सखी! देख, उनके साँवले रूप से तुलना करते हुए ये उमड़ आये हैं। (यह) इन्द्र-धनुष ऐसा लगता है मानो उनका पीताम्बर शोभा दे रहा हो। बिजली को उनकी दन्त-पंक्ति समझो और बगुलों की पंक्ति मानो मोतियों की माला है, जिसे चित्त एकाग्र होकर देख रहा है। मेघ (भी) आकाश में (इस भाँति) गरजते हैं, मानो गोविन्द वाणी हो, जिसे सुनकर नेत्रों में जल भर आता है। सूरदास जी कहते हैं कि इस प्रकार श्यामसुन्दर के गुणों का स्मरण करके व्रजस्त्रियाँ व्याकुल हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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