विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) ‘अब यह वर्षा-ऋतु भी बीत गयी। (इसलिये) चतुर सखी! (अब) चिन्ता मत कर, प्रसन्न हो जा; क्योंकि उत्तम ऋतु शरद् आ गयी है। सुन्दर सरोवरों में कमल खिल गये हैं, नये ढंग से नवीन कमलपत्र आ गये हैं तथा सुन्दर चन्द्रमा की किरणें (भी) उदय होने लगी हैं, जो हृदय के भीतर अमृतमय जान पड़ती हैं। अभिमान, मोह और मद की घटाएँ घट गयीं (क्षीण हो गयीं) जिससे तमोगुण का तेज नष्ट हो गया तथा संयमरूपी सब नदियों का जल स्वच्छ हो गया है, कामरूपी काई फट गयी (दूर हो गयी) है। शरद्-ऋतु का यही संदेश है, जिसे दया करके (श्यामसुन्दर ने) कहला भेजा है।’ यह सुनकर सब चतुर सखियाँ (वहाँ) आ गयीं, जो श्यामसुन्दर के प्रेम में (उनके लौटने की) अवधि (देखती) मृतप्राय हो रही थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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