विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) लोग (तो) सब चतुराई की बातें कहते हैं; पर वे बातें कहने में ही सुगम हैं, करने में नहीं आतीं, इसीलिये (वे) मन में सोची जा सकती हैं। कहते हैं कि पतिव्रता स्त्री अग्नि को चन्दन-सी शीतल समझकर उमंग में भर जाती है; किंतु वह उष्ण है या शीतल, इसका पता तो पीछे जाकर पाती है। सभी कहते हैं कि युद्ध करना अत्यन्त सरल है और तलवार तो पुष्पलता के समान है; किंतु जो योद्धा (युद्ध में) अपना मस्तक देता है, वही (युद्ध का) व्यवहार (वास्तविक रूप) जानता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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