विरह-पदावली -सूरदास
राग धनाश्री (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) सुना जाता है कि (श्यामसुन्दर ने) कहीं द्वारिका (नगरी) बसायी है। वह दक्षिण दिशा में समुद्र के किनारे है, सोने की उसकी चहारदीवारी है और गोमती नदी उसे चारों ओर से खाई की तरह घेरे हुए है। वहाँ का मार्ग चलता नहीं, (इसी से) कोई संदेश नहीं आता और न उतनी दूर कोई मनुष्य जाता ही है। कहा जाता है कि वह मथुरा से सौ योजन (चार सौ कोस) दूर है, (मैंने) यह समाचार एक यात्री से पाया है। सारा व्रज (इस बात से) दुःखी है और श्रीनन्द जी तथा यशोदा जी भी (दुःखी हैं); (सब) श्याम-बलराम में चित्त लगाये (उन्हें देखने को) अपलक बने हुए हैं। स्वामी के दर्शनों के बिना व्रज में (तो) कामदेव की विजय-घोषणा हो रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |