विरह-पदावली -सूरदास
(219) (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) आज वन में मयूर बोलने लगे और बादलों की काली घटाएँ उमड़कर घनघोर (खूब तीव्र) वर्षा कर रही हैं। श्री नन्दकुमार से वियोग हो जाने पर आधी रात को (यह वैरिन) कोकिल बोलती है और वैरी पपीहा भी पीउ-पीउ की रट लगा रहा है, जिससे कामदेव बलवान हो उठा है। वह मुझे प्रतिदिन जलाता रहता है, हाहाकारपूर्वक अनुनय करने पर भी विराम नहीं लेता। यह मूर्ख मन श्यामसुन्दर के बिना जी रहा है, इस प्रकार जीवित रहने पर जो कुछ चला जाय, वही कम है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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