विरह-पदावली -सूरदास
राग सारंग (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) ऐसा सुना जाता है कि (इस वर्ष) दो श्रावण महीने हैं, वही वेदना बार-बार चित्त को पीड़ा देती है कि श्यामसुन्दर ने सावन में ही आने के लिये कहा था। उन दिनों (उन्होंने हमसे) प्रेम क्यों किया और (क्यों) अब छोड़ दिया। उन्होंने स्वयं ही तो हमें अपनाकर पवित्र किया था। सखी! इस दुःख से तो (जी में आता है कि) कहीं ऐसे स्थान पर यहाँ से निकलकर चला जाना चाहिये, जहाँ कोई (हमारा) नाम न सुन पाये (पहिले तो वे) स्नेह बढ़ाने लगे थे; पर अब उन्होंने हमें भ्रमर के समान एक ही बार (सर्वथा) छोड़ दिया। अब भला उन्हें हमारी स्मृति क्यों होने लगी, उन्हें तो (नगर की) अच्छी (नारियाँ प्रिय) लगने लगी हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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