विरह-पदावली -सूरदास
गोपिकाओं की उद्विग्नता (सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! श्यामसुन्दर के चले जाने पर (क्या) हमारे प्राण रह सकेंगे? (अर्थात नहीं रहेंगे।) जैसे इस समय हम परस्पर बातें कर रही हैं वैसे (ही) फिर (बातें) कर सकेंगी? जो दिन-रात कहीं (मोहन से) पृथक नहीं होते, (क्या) उनका वियोग अब हमारे हृदय सह नहीं सकेंगे? तुम्हारे आगे, बस, एक बात कहती हूँ कि श्यामसुन्दर नहीं जायँगे, यही रहेंगे। हमारे स्वामी (यहाँ) यशोदा मैया को छोड़कर मथुरा जाकर क्या पायेंगे ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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