कदम्ब

चीर घाट स्थित कदम्ब वृक्ष

कदम्ब के पेड़ की महिमा ब्रज में बहुत है। जब ब्रज की कुंज गलियन में अठखेलियां करने वाला कान्हा कभी कदम्ब की सघन छांव में आंखें बंद करके बांसुरी की तान छेड़ता तो प्रकृति भी सम्मोहित हो उठती थी।

  • कदम्ब के वृक्ष से कालिया नाग पर छलांग लगाने, गोपियों के वस्त्र चुराने की घटना हो या सुदामा के साथ चने खाने का वाकया। द्वापर के जमाने में कृष्ण का साथी रहा कदम्ब का वृक्ष आज उपेक्षा का शिकार हो चला है।
  • कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा होने के कारण कदम्ब का उल्लेख ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने किया है।
  • इसका इत्र भी बनता है जो बरसात के मौसम में अधिक उपयोग में आता है। मथुरा में अब यह वृक्ष बहुत ही कम पाया जाता है।

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तौ कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ॥
पाहन हौं तौ वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर-धारन ।
जौ खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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