तुलसी

तुलसी

तुलसी का भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से तुलना न की जा सके वह 'तुलसी' है। हिन्दू धर्म में तुलसी को जगत-जननी का पद प्राप्त है। तुलसी के माहात्मयों व कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं।

पौराणिक प्रसंग

  • हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'शिवपुराण' के अनुसार तुलसी प्रसिद्ध दानव शंखचूड़ की पत्नी थी। वह सच्ची पतिव्रता स्त्री थी। शंखचूड़ ने ब्रह्मा को तपस्या द्वारा प्रसन्न कर लिया था और उनसे यह वर माँग लिया कि वह देवताओं के लिए अजेय हो जाये। वरदान पाने के पश्चात् शंखचूड़ ने देवताओं से उनका राज्य छीन लिया। शंखचूड़ भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। उसके राज्य में प्रजा पूर्णत: सुखी थी, किंतु देवता अपना राज्य छिन जाने से दु:खी थे। देवताओं ने विष्णु की शरण ली और उनसे शंखचूड़ के वध का उपाय पूछा। विष्णु ने बताया कि शंखचूड़ की मृत्यु तो भगवान शिव के द्वारा होगी। युद्ध होने पर शंखचूड़ परास्त ही नहीं हो रहा था, तब विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण कर उसकी पत्नी तुलसी का सतीत्व नष्ट कर दिया और वहाँ युद्धभूमि में शंखचूड़ शिव द्वारा मारा गया।
  • यह जानकर कि विष्णु द्वारा मेरे साथ छल किया गया है, तुलसी ने कहा- "आज आपने छलपूर्वक मेरा धर्म नष्ट किया है और मेरे स्वामी को मार डाला। आप अवश्य ही पाषाण हृदय हैं, अत: आप मेरे श्राप से अब पाषाण होकर पृथ्वी पर रहें।" तब भगवान विष्णु ने कहा- "देवी। तुम मेरे लिए भारतवर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। अब तुम इस शरीर का त्याग करके दिव्य देह धारणकर मेरे साथ आनन्द से रहो। तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर गंडकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा। गंडकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे। धर्मालुजन तुलसी के पौधे व शालिग्राम शिला का विवाह कर पुण्य अर्जन करेंगे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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