द्वैरथ युद्ध

द्वैरथ युद्ध का उल्लेख हिन्दू महाकाव्य महाभारत में मिलता है। वह युद्ध जिसे दो योद्धा अपने-अपने रथों पर सवार होकर लड़ते हैं, दैरथ युद्ध कहा जाता है। महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 60वें अध्याय में भीष्म और अर्जुन के द्वैरथ युद्ध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-

भीष्म का ध्वज चार ताल वृक्षों से चिह्नित और ऊँचा था। उनके रथ में अच्छे घोड़े जूते हुए थे, जिनके वेग से वह रथ अदभुत शक्तिशाली जान पड़ता था। उस पर आरुढ़ होकर शान्तनुनन्दन भीष्म ने किरीटधारी अर्जुन पर धावा किया, जो बाण और अशनि आदि महान दिव्यास्त्रों की दीप्ति से उदीप्त हो रहे थे। इस प्रकार इन्द्रतुल्य प्रभावशाली इन्द्रकुमार अर्जुन पर द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य, विविंशति, दुर्योधन तथा भूरिश्रवा ने भी आक्रमण किया। तदनन्तर सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता, सोने के विचित्र कवच धारण करने वाले शूरवीर अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने एक श्रेष्ठ रथ के द्वारा वेगपूर्वक वहाँ पहुँचकर उन समस्त कौरव महारथियों पर धावा किया।

अर्जुनकुमार का पराक्रम दूसरों के लिये असंहार था। वह उन कौरव महारथियों के बड़े-बड़े़ अस्त्रों को नष्ट करके यज्ञ मण्डप में महान मन्त्रों द्वारा हविष्य की आहुति पाकर प्रज्वलित हुई ज्वालामालाओं से अलंकृत भगवान अग्निदेव के समान शोभा पाने लगा। तदनन्तर उदार शक्तिशाली भीष्म ने रणभूमि में तुरन्त ही शत्रुओं के रक्तरूपी जल एवं फेन से भरी नदी बहाकर सुभद्राकुमार अभिमन्यु को टालकर महारथी अर्जुन पर आक्रमण किया। तब किरीटधारी अर्जुन ने हंसकर अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए गाण्डीव धनुष से छोडे़ और शिला पर रगड़कर तेज किये हुए विपाठ नामक बाणों के समूह से शत्रुओं के बड़े-बड़े़ अस्त्रों के जाल को छिन्न-भिन्न कर दिया। तत्‍पश्‍चात अप्रतिहत पराक्रम वाले महामना कपिध्वज अर्जुन ने सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ भीष्म पर तुरन्त ही निर्मल भल्लों तथा बाणसमूहों की वर्षा आरम्भ कर दी। इसी प्रकार आकाश में कपिध्वज अर्जुन के बिछाये हुए महान अस्त्रजाल को भीष्म जी ने अपने अस्त्रों के आघात से उसी प्रकार छिन्न-भिन्न कर दिया, जैसे भगवान सूर्य अन्धकार राशि को नष्ट कर देते हैं। इस तरह सत्पुरुषों में श्रेष्ठ भीष्म और अर्जुन में धनुषों की भयंकर टंकार से युक्त, दैन्यरहित द्वैरथ युद्ध होने लगा, जिसे कौरव और सृंजय वीरों तथा दूसरे लोगों ने भी देखा।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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