सभी पृष्ठ | पिछला पृष्ठ (सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 74) | अगला पृष्ठ (हरि, तुम क्यौं न हमारैं आए -सूरदास) |
- स्याम रूप देखन की साध -सूरदास
- स्याम रूप मैं री मन अरयौ -सूरदास
- स्याम लियौ गिरिराज उठाइ -सूरदास
- स्याम वियोग सुनौ हो मधुकर -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा 2 -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा 3 -सूरदास
- स्याम संग सुख लूटति हौ -सूरदास
- स्याम सकुच प्यारी उर जानी -सूरदास
- स्याम सखा कौं गेंद चलाई -सूरदास
- स्याम सखा जेंवत ही छाँड़े -सूरदास
- स्याम सखा जेवत ही छाड़े -सूरदास
- स्याम सखि नीकै देखे नाहि -सूरदास
- स्याम सखि नीकैं देखे नाहिं -सूरदास
- स्याम सखी कारेहु मैं कारे -सूरदास
- स्याम सबै बतियाँ कहि दैहौ -सूरदास
- स्याम सवनि कौ देखहीं -सूरदास
- स्याम सवनि कौं देखहीं -सूरदास
- स्याम सिधारे कौनै देस -सूरदास
- स्याम सुंदर आवत वन तै बने -सूरदास
- स्याम सुंदर मदन मोहन -सूरदास
- स्याम सुखरासि, रसरासि भारी -सूरदास
- स्याम सैन दै सखी बुलाई -सूरदास
- स्याम सौ काहे की पहिचानि -सूरदास
- स्याम सौं काहे की पहिचानि -सूरदास
- स्याम सौंह कुच परसि कियौ -सूरदास
- स्याम स्यामा परम कुसल जोरी -सूरदास
- स्याम हँसे प्यारी मुख हेरौ -सूरदास
- स्याम हंसि बोले प्रभुता डारि -सूरदास
- स्याम हृदय जलसुत की माला -सूरदास
- स्याम हौ निजु कै बिसारी -सूरदास
- स्यामघन दामिनि प्रगट भई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्यामरंग राँची ब्रजनारी -सूरदास
- स्यामहि सुख दे राधिका निज धाम सिधारी -सूरदास
- स्यामहिं गावत काम बस 6 -सूरदास
- स्यामहिं देखि महरि मुसक्यानी -सूरदास
- स्यामहिं दोष कहा कहि दीजै -सूरदास
- स्यामहिं दोष देहु जनि माई -सूरदास
- स्यामहिं धीरज दै पुनि आई -सूरदास
- स्यामहिं बोलि लियौ ढिग प्यारी -सूरदास
- स्यामहिं मैं कैसै पहिचानौ -सूरदास
- स्यामहिं मैं कैसैं पहिचानौं -सूरदास
- स्यामहिं सुख दे राधिका निज धाम सिधारी -सूरदास
- स्यामह्रदय जलसुत की माला -सूरदास
- स्यामा छबि निरखति नागरि नारि -सूरदास
- स्यामा जू अपनौ रूप देखि रीझति है -सूरदास
- स्यामा तू अति स्यामहिं भावै -सूरदास
- स्यामा निसि मै सरस बनी री -सूरदास
- स्यामा प्यारी बोलन लागे तमचुर -सूरदास
- स्यामा बदन देखि हरि लाज्यौ -सूरदास
- स्यामा स्याम अंकम भरी -सूरदास
- स्यामा स्याम करत बिहार -सूरदास
- स्यामा स्याम कुंज बन आवत -सूरदास
- स्यामा स्याम कै उर बसी -सूरदास
- स्यामा स्याम कैं उर बसी -सूरदास
- स्यामा स्याम खेलत दोउ होरी -सूरदास
- स्यामा स्याम खेलत दोउ होरी 2 -सूरदास
- स्यामा स्याम छबि की साध -सूरदास
- स्यामा स्याम सुभग जमुना जल -सूरदास
- स्यामा स्याम सेज उठि बैठे -सूरदास
- स्यामा स्याम सौ अति रति कीनी -सूरदास
- स्यामा स्याम सौ आजु बृंदाबन -सूरदास
- स्यामा स्याम सौं अति रति कीनी -सूरदास
- स्यामा स्याय रिझवति भारी -सूरदास
- स्यासमा स्याम करत बिहार -सूरदास
- स्यूमरश्मि
- स्यूमरश्मि और कपिल का संवाद
- स्रम करिहौ जब मेरी सी -सूरदास
- स्रु तिनि हित हरि मच्छ रूप धारयौ2 -सूरदास
- स्रु तिनि हित हरि मच्छ रूप धारयौ -सूरदास
- स्व-सुख-कल्पनाशून्य सर्वथा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्व सुख-वासना-गन्ध -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वक्ष
- स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
- स्वधर्म (महाभारत संदर्भ)
- स्वधा
- स्वन
- स्वप्न और सुषुप्ति-अवस्था में मन की स्थिति का वर्णन
- स्वप्नकर्ता
- स्वबोध
- स्वभाव (महाभारत संदर्भ)
- स्वयंप्रभा
- स्वयंभुव मनु
- स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
- स्वराष्ट्र
- स्वरूप
- स्वरोचिष मनु
- स्वर्ग
- स्वर्ग (बहुविकल्पी)
- स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
- स्वर्ग में नारद और युधिष्ठिर की बातचीत
- स्वर्ग में ले जाने वाले पुण्यों का वर्णन
- स्वर्ग लोक
- स्वर्गतीर्थ
- स्वर्गद्वार प्रजाद्वार
- स्वर्गलोक
- स्वर्गलोक में ययाति का स्वागत
- स्वर्गारोहण पर्व महाभारत
- स्वर्गारोहणपर्व महाभारत
- स्वर्ण-पिंजर-स्थित मगन मन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वर्णग्रीव
- स्वर्णरेखा
- स्वर्भानु
- स्वर्भानु (कृष्ण पुत्र)
- स्वर्भानु (दनु पुत्र)
- स्वर्भानु (बहुविकल्पी)
- स्वर्लोक
- स्वस्ति
- स्वस्तिक
- स्वस्तिक (अनुचर)
- स्वस्तिक (बहुविकल्पी)
- स्वस्तिमती
- स्वस्त्यात्रेय
- स्वांग
- स्वागत! स्वागत! आओ प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वाती
- स्वाधिष्ठान चक्र
- स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वामी अनंताचार्य
- स्वामी अनन्ताचार्य
- स्वामी आशुधीर
- स्वामी आशुधीर देव
- स्वामी करपात्री
- स्वामी के शुचि चरण-कमल में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वामी पहिलौ प्रेम सँभारौ -सूरदास
- स्वामी मिलै नंद कौ लाला -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वामी हरिदास
- स्वामी हरिदास (हरिपुरुषजी)
- स्वायंभुव मनु
- स्वायंभुव मनु सुत भए दोइ -सूरदास
- स्वायंभू मनु के सुत दोइ -सूरदास
- स्वायम्भुव मनु
- स्वायम्भुव मनु के कथानुसार का धर्म का स्वरूप
- स्वारोचिष मनु
- स्वार्थ (महाभारत संदर्भ)
- स्वाहा
- स्वाहा (बहुविकल्पी)
- स्वाहा (बृहस्पति पुत्री)
- स्विष्टकृत
- स्विष्टकृत (बहुविकल्पी)
- स्विष्टकृत (बृहस्पति पुत्र)
- स्कन्द
- स्याम-बलराम कौं सदा गाऊँ -सूरदास
- स्याम कहा चाहत से डोलत -सूरदास
- स्याम गरीबनि हूँ के ग्राहक -सूरदास
- स्याम गरीबनि हूं के ग्राहक -सूरदास
- स्याम तन देखि री आपु तन देखिऐ -सूरदास
- स्याम भए ऐसे रस -सूरदास
- स्याम भजन-बिनु कौन बड़ाई -सूरदास
- स्याम सखनि ऐसैं समुझावत -सूरदास
- स्याम सुंदर पर वार -मीराँबाई
- स्याम सुनहु इक बात हमारी -सूरदास
- स्याम सुनहु इकबात हमारो -सूरदास
- स्वपचहु स्त्रेष्ट होत पद सेवत -सूरदास
- स्वर्ग
- स्वलोके महारत्न सिंहासनस्थ
- स्वाहेय
- हँसत कहति कीधौं सत भाउ -सूरदास
- हँसत कहौ मैं तोसौं प्यारी -सूरदास
- हँसत गोपाल नंद के आगैं -सूरदास
- हँसत चले तब कुँवर कन्हाई -सूरदास
- हँसत स्याम ब्रज-घर कौं भागे -सूरदास
- हँसत हँसत स्याम प्रबल -सूरदास
- हँसति नारि सब घरहिं चलो -सूरदास
- हँसति नारि सब घरहिं चलों -सूरदास
- हँसि-हँसि कहत कृष्न मुख बानी -सूरदास
- हँसि-हँसि झूलत फूल-हिंडोरें -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हँसि के कह्यो दूतिका आगै -सूरदास
- हँसि के कह्यो दूतिका आगैं -सूरदास
- हँसि बस कीन्ही घोष-कुमारि -सूरदास
- हँसि बोले गिरधर रस-बानी -सूरदास
- हँसि बोले तब सारँगपानी -सूरदास
- हँसि हँसि गोपी कहतिं परस्पर -सूरदास
- हंस
- हंस (अरिष्टा पुत्र)
- हंस (कृष्ण)
- हंस (बहुविकल्पी)
- हंस (वसुदेव पुत्र)
- हंस काग कौं संग भयौ -सूरदास
- हंसकायन
- हंसकायन (जाति)
- हंसकायन (बहुविकल्पी)
- हंसकूट
- हंसचूड़
- हंसज
- हंसत गोप कहि नंद महर सौं -सूरदास
- हंसत सखनि सौं कहत कन्हाई -सूरदास
- हंसति सखनि यह कहत कन्हाई -सूरदास
- हंसप्रपतन तीर्थ
- हंसवक्त्र
- हंसवाहन
- हंसि-हंसि कहत कृष्नक मुख बानी -सूरदास
- हंसि जननि सौं बात कहत हरि -सूरदास
- हंसि हंसि गोपी कहति परस्पर -सूरदास
- हंसिका
- हंसी
- हंसी (बहुविकल्पी)
- हंसी (ब्रह्मा पुत्र)
- हठ (महाभारत संदर्भ)
- हनु, तैं सबको काज सँवारयौ -सूरदास
- हनुमत, मली करी तुम आए -सूरदास
- हनुमत बल प्रगट भयौ -सूरदास
- हनुमान
- हनुमान अंगद के आगैं -सूरदास
- हनुमान का भीमसेन से रामचरित्र का संक्षिप्त वर्णन
- हनुमान द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन
- हनुमान द्वारा चारों वर्णों के धर्मों का प्रतिपादन
- हनुमान द्वारा भीमसेन को विशाल रूप का प्रदर्शन
- हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना
- हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हनुमान सँजीवनि ल्यायौ -सूरदास
- हन्यमान
- हम अलि कैसे कै पतियाहि -सूरदास
- हम अलि गोकुलनाथ अराध्यो -सूरदास
- हम अहीर ब्रजवासी लोग -सूरदास
- हम कौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास
- हम कौं सपनेहू मैं सोच -सूरदास
- हम जानति वेइ कुंवर कन्हाई -सूरदास
- हम जानतिं वेइ कुँवर कन्हाई -सूरदास
- हम तप करि तनु गारयौ जाकौ -सूरदास
- हम तप करि तनु गारयौ जाकौं -सूरदास
- हम तिय मृतक जियत ससि साखी -सूरदास
- हम तुम सौं बिनती करैं -सूरदास
- हम तुम्हरै नितहीं प्रति आवति -सूरदास
- हम तुम्हरैं नितही प्रति आवति -सूरदास
- हम तै गए उनहुँ तै खोवै -सूरदास
- हम तै तप मुरली न करै री -सूरदास
- हम तैं कमल नैन -सूरदास
- हम तैं गए उनहुँ तैं खोवैं -सूरदास
- हम तैं तप मुरली न करै री -सूरदास
- हम तैं बिदुर कहा है नीकौं -सूरदास
- हम तौ इतनें ही -सूरदास
- हम तौ इतनै ही सचु पायो -सूरदास
- हम तौ कान्ह केलि की भूखी -सूरदास
- हम तौ तबहि तै जोग लियौ -सूरदास
- हम तौ नंदघोप के वासी -सूरदास
- हम तौ भई जग्य के पसु ज्यौं -सूरदास
- हम तौ सब बातनि सचु पायौ -सूरदास
- हम देखे इहि भाँति कन्हाई -सूरदास
- हम देखे इहि भाँति गुपाल -सूरदास
- हम न भई वृंदावन-रेनु -सूरदास
- हम न भईं बड़भागिनि बँसुरी -सूरदास
- हम न भईं बृंदाबन-रेनु -सूरदास
- हम पर काहै झुकति ब्रजनारी -सूरदास
- हम पर रिस करनि ब्रजनारि -सूरदास
- हम पर हेत किए रहिबौ -सूरदास
- हम भई ढीठि भले तुम ग्वाल -सूरदास
- हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास
- हम भक्तनि के भक्त हमारे -सूरदास
- हम मतिहीन कहा कछु जानै -सूरदास
- हम माँगत हैं सहज सौं -सूरदास
- हम लेंगे तेरा नाम -रामनरेश त्रिपाठी
- हम व्रजबाल गोपाल उपासी -सूरदास
- हम सब जानति हरि की घातै -सूरदास
- हम सरघा ब्रजनाथ सुधानिधि -सूरदास
- हम सरषा ब्रजनाथ -सूरदास
- हमको दुखी देखकर प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमकौ इती कहा गोपाल -सूरदास
- हमकौ तुम बिनु सबै सतावत -सूरदास
- हमकौ दुख भई ये सेजै -सूरदास
- हमकौ नँदनदन कौ गारौ -सूरदास
- हमकौ विधि ब्रज वधू न कीन्ही -सूरदास
- हमकौ हरि की कथा सुनाउ -सूरदास
- हमकौं जागत रैनि बिहानी -सूरदास
- हमकौं नीकै समुझि परी -सूरदास
- हमकौं नृप इहिं हेत बुलाए -सूरदास
- हमकौं बिधि ब्रज-वधू न कीन्ही -सूरदास
- हमकौं लाज न तुमहिं कन्हाई -सूरदास
- हमकौं सपनेहू मैं सोच -सूरदास
- हमतै कछु सेवा न भई -सूरदास
- हमतै कमल नयन भए दूरि -सूरदास
- हमतै हरि कबहूँ न उदास -सूरदास
- हमतौ दुहूँ भाँति फल पायौ -सूरदास
- हमतौ निसि दिन हरि गुन गावै -सूरदास
- हमने सुणीछै हरि अधम उधारण -मीराँबाई
- हमरी सुधि भूली अलि आए -सूरदास
- हमरी सुरति बिसारी बनवारी -सूरदास
- हमरी सुरति लेत नहिं माधौ -सूरदास
- हमरी सुरति विसारी वनवारी -सूरदास
- हमरे प्रथमहि नेह नैन कौ -सूरदास
- हमरै कौन जोग विधि साधै -सूरदास
- हमरो प्रणाम बांके बिहारी को -मीराँबाई
- हमसो उनसौ कीन सगाई -सूरदास
- हमहि और सो रोकै कौन -सूरदास
- हमहि कहा सखि तन के -सूरदास
- हमहि कहा सखि तन के जतन की -सूरदास
- हमहि कह्यौ हो स्याम दिखावहु -सूरदास
- हमहिं उर कौन कौ रे भैया -सूरदास
- हमहिं और सो रोकै कौन -सूरदास
- हमहिं कह्यौ हो स्याम दिखावहु -सूरदास
- हमही पर पिय रूसे हौ -सूरदास
- हमहीं पर पिय रूसे हौ -सूरदास
- हमहीं पर सतरात कन्हाई -सूरदास
- हमारी जन्मुभूमि यह गाउँ -सूरदास
- हमारी तुमकौं लाज हरी -सूरदास
- हमारी नाहिं जानत पीर -सूरदास
- हमारी पीर न हरि बिनु जाइ -सूरदास
- हमारी बात सुनौ ब्रजराज -सूरदास
- हमारे अंबर देहु मुरारी -सूरदास
- हमारे जीवन लाडिलि-लाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमारे जीवनधन कृष्ण मुकुंद -सूरदास
- हमारे देहु मनोहर चीर -सूरदास
- हमारे निर्धन के धन राम -सूरदास
- हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ -सूरदास
- हमारे बोल बचन परतीति -सूरदास
- हमारे मन राधा स्याम बसो -मीराँबाई
- हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी -छीतस्वामी
- हमारे हरि चलत कहत है दूरि -सूरदास
- हमारे हरि चलन -सूरदास
- हमारे हिरदै कुलिसहु जीत्यौ -सूरदास
- हमारे हिरदैं कुलिसहु -सूरदास
- हमारै हरि हारिल की लकरी -सूरदास
- हमारो दान देहो गुजरेटी -कुम्भनदास
- हमें ऐसा बल दो भगवान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमें प्रभु! दो ऐसा वरदान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हमै तौ इतनै ही सौ काज -सूरदास
- हमैं नँदनंदन मोल लिये -सूरदास
- हयग्रीव
- हयग्रीव (बहुविकल्पी)
- हयग्रीव (राजा)
- हयग्रीव दैत्य
- हयशिरा
- हर
- हर (बहुविकल्पी)
- हर (ब्रह्मा के पुत्र)
- हर (वसु)
- हर कौ तिलक हरि -सूरदास
- हर कौ तिलक हरि बिनु दहत -सूरदास
- हर लो प्रभु! मेरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हर लो हरि सुख-सुविधा सारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरत मन-माधव कंचन-गोरी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- हरवर चक्र धरे हरि धावत -सूरदास
- हरष अक्रूर हिरदै न माइ -सूरदास
- हरष नर नारि मथुरा पुरी के -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 2 -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 3 -सूरदास
- हरष भए नँदलाल बैठि 4 -सूरदास
- हरषि पिय प्रेम तिय अंक लीन्ही -सूरदास
- हरषि मुरली नाद स्याम कीन्हौ -सूरदास
- हरषि स्याम तिय बाहँ गही -सूरदास
- हरषि स्याम पिय बाहँ गही -सूरदास
- हरषी निरखि रूप अपार -सूरदास
- हरषे नंद टेरत महरि -सूरदास
- हरि