हँसि जननि सौं बात कहत हरि, देख्यौ मैं बृंदाबन नीके।
अति रमनीक भूमि द्रुम बेली, कुंज सघन निरखत सुख जी के।।
जमुना कैं तट धेनु चराई, कहत बात माता-मन नीके।
भूख मिटी बन-फल के खाऐं, मिटी प्यास जमुना-जल पीके।।
सुनति जसोदा सूत की बातैं, अति आनंद मगन तब ही के।
सूरदास-प्रभु बिस्व-भरन ये, चोर भए ब्रज तनक दही के।।1394।।