हमें प्रभु! दो ऐसा वरदान।
तन-मन-धन अर्पण कर सारा, करें सदा गुण-गान॥
कभी न तुमसे कुछ भी चाहें, सुख-सम्पति-समान।
अतुल भोग परलोक-लोक के खींच न पायें ध्यान॥
हानि-लाभ, निन्दा-स्तुति सम हों, मान और अपमान।
सुख-दुख विजय-पराजय सम हों, बन्धन-मोक्ष समान॥
निरखें सदा माधुरी मूरति, निरुपम रसकी खान।
चरण-कमल-मकरन्द-सुधा का करें प्रेमयुत पान॥