हनुमान सँजीवनि ल्यायौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग


 
हनुमान सँजीवनि ल्यायौ।
महाराज रघुवीर धीर कौं हाथ जोरि सिर नायौ।
परबत आनि धरयौ सागर-तट, भरत सँदेस सुनायौ।
सूर सँजीवनि दै लछिमन कौं मूर्च्छित फेरि जगायौ॥156॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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