स्वामी करपात्री
| |
पूरा नाम | स्वामी करपात्री जी महाराज |
अन्य नाम | हर नारायण ओझा |
जन्म | सन 1907 |
जन्म भूमि | प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | सन 1982 |
मृत्यु स्थान | केदारघाट, वाराणसी |
कर्म-क्षेत्र | राजस्थान |
मुख्य रचनाएँ | 'गोपी गीत', 'भक्ति सुधा'। |
पुरस्कार-उपाधि | हिन्दू धर्म सम्राट |
प्रसिद्धि | भारतीय संत एवं संन्यासी राजनेता |
विशेष योगदान | अखिल भारतीय धर्म संघ की स्थापना की थी। |
नागरिकता | भारतीय |
पुस्तकें | गोपी गीत, भक्ति सुधा, भागवत सुधा |
अन्य जानकारी | भारत की एक परम्परावादी हिन्दू पार्टी की स्थापना स्वामी करपात्री ने सन 1948 में की थी तथा प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी। सम्पूर्ण देश में पैदल यात्राएँ करके धर्म प्रचार किया। |
धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज (जन्म- सन 1907; मृत्यु- सन 1982) एक प्रख्यात भारतीय संत एवं संन्यासी राजनेता थे। धर्मसंघ व अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनीतिक पार्टी के संस्थापक महामहिम स्वामी करपात्री को "हिन्दू धर्म सम्राट" की उपाधि मिली। स्वामी करपात्री एक सच्चे स्वदेशप्रेमी व हिन्दू धर्म प्रवर्तक थे। इनका वास्तविक नाम 'हर नारायण ओझा' था।
विषय सूची
जीवन परिचय
स्वामी श्री का जन्म संवत 1964 विक्रमी (सन 1907 ईस्वी) में श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया को ग्राम भटनी, ज़िला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में सनातन धर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण स्व. श्री रामनिधि ओझा एवं परमधार्मिक सुसंस्क्रिता स्व. श्रीमती शिवरानी जी के आँगन में हुआ। बचपन में उनका नाम 'हरि नारायण' रखा गया। सन 1982 को केदारघाट वाराणसी में स्वेच्छा से उनके पंच प्राण महाप्राण में विलीन हो गए। उनके निर्देशानुसार उनके नश्वर पार्थिव शरीर का केदारघाट स्थित श्री गंगा महारानी को पावन गोद में जल समाधी दी गई।
अखिल भारतीय राम राज्य परिषद
भारत की एक परम्परावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्री ने सन 1948 में की थी। इस दल ने सन 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी। सन 1952, 1957 एवम 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थी।
धर्मसंघ की स्थापना
सम्पूर्ण देश में पैदल यात्राएँ करते धर्म प्रचार के लिए सन 1940 ई. में "अखिल भारतीए धर्म संघ" की स्थापना की जिसका दायरा संकुचित नहीं किन्तु वह आज भी प्राणी मात्र में सुख शांति के लिए प्रयत्नशील हैं। उसकी दृष्टि में समस्त जगत और उसके प्राणी सर्वेश्वर, भगवान के अंश हैं या रूप हैं। उसके सिद्धांत में अधार्मिकों का नहीं अधर्म के नाश को ही प्राथमिकता दी गई है। यदि मनुष्य स्वयं शांत और सुखी रहना चाहता है तो औरों को भी शांत और सुखी बनाने का प्रयत्न आवश्यक है। इसलिए धर्म संघ के हर कार्य को आदि अंत में धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, ऐसे पवित्र जयकारों का प्रयोग होना चाहिए।
- स्वामी करपात्री महाराज की कृष्णकोश पर उपलब्ध पुस्तकें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज