हरषे नंद टेरत महरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली



हरषे नंद टेरत महरि।
आइ सुत-मुख देखि आतुर, डारि दै दघि-डहरि।
मथति दधि जसुमति मथानी, धुनि रही घर-घहरि।
स्रवन सुनति न महर-बातैं, जहाँ-तहँ गइ चहरि।
यह सुनत तब मातु धाई, गिरे जाने झहरि।
हँसत नँद-मुख देखि धीरज तब करयौ ज्यौ ठहरि।
स्याम उलठे परे देखे, बढ़ी सोभा लहरि।
सूर प्रभु कर सेज टेकत, कबहुँ टेकत ढहरि।।67।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः