हमतौ दुहूँ भाँति फल पायौ।
जौ गोपाल मिलै तौ नीकौ, नतरु जगत जस छायौ।
कहँ हम या गोकुल की गोपी, बरनहीन घटि जाति।
कहँ वै श्री कमला के बल्लभ, मिलि बैठी इक पाँति।।
निगम ज्ञान मुनि ध्यान अगोचर, ते भए घोष निवासी।।
ता ऊपर अब कहौ देखि धौ, मुक्ति कौन की दासी।
जोग कथा ऊधौ पालागौ, मति कहौ बारबार।
‘सूर’ स्याम तजि आन भजै जो, ताको जननी छार।।3816।।