हमकौं नृप इहिं हेत बुलाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


हमकौं नृप इहिं हेत बुलाए?
कहाँ धनुष, कहँ हम अति बालक, कहि आचरज सुनाए।।
ठाढ़े सूर वीर अवलोकत, तिनिसौ कहौ न तोरै।
हमसौ कहौ खेल कछु खेलै, यह कहि कहि मुख मोरै।।
कस एक तहँ असुर पठायौ, यहै कहत वह आयौ।
बनै धनुष तोरै अब तुमकौ, पाछै निकट बुलायौ।।
बालक देखि गहन भुज लाग्यौ, ताहि तुरत ही मारयौ।
तोरि कोदंड मारि सब जोधा, तब बल भुजा निहारयौ।।
जाकै अस्त्र तिनहिं तेहिं मारयौ, चले सामुही खोरी।
'सूर' कूबरी चदन लीन्हे, मिली स्याम कौ दौरी।।3049।।

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