हम माँगत हैं सहज सौ, तुम अति रिस कीन्हौ।
कहा करै तौ जाहिंगे, तुम हमहिं न दीन्हौ।।
रिस करियत क्यौ सहजही, भुज देखत ऐसे।
करि आए नट स्वाँग से, मोकौ तुम वैसे।।
हमहिं नृपति सौ नात है, तातै हम माँगै।
बसन देहु हमकौ सबै, कहिहै नृप आगै।।
नृप आगे लौ जाहुगे, बीचहिं मरि जैहौ।
नैकु जियन की आस है, ताहू विनु ह्वैहौ।।
नृप काहे कौ मारिहै, तुमही अब मारत।
गहरु करत हमकौ कहा, मुख कहा निहारत।।
'सूर' दुहुनि मैं मारिहौ, अति करत अचगरी।
बसंत तहाँ बुधि तैसियै, वह गोकुल नगरी।।3039।।