हम तौ कान्ह केलि की भूखी।
कहा करै लै निर्गुन तुम्हरौ, विरहिनि बिरह विदूषी।।
कहियै कहा यहै नहिं जानत, कहौ जोग किहि जोग।
पालागौ तुमही सेवा पुर, बसत बावरे लोग।।
चंदन, अभरन, चीर चारु वर, नेकु आपु तन कीजै।
दंड, कमंडल, भसम अघारी, तब जुवतिनि कौं दीजै।।
‘सूर’ देखि दृढ़ता गोपिन को, ऊधौ दृढ़ व्रत पायौ।
करी कृपा जदुनाथ मधुप कौ, प्रेमहिं पढ़न पठायौ।।3682।।