- महाभारत आदि पर्व के ‘स्वयंवर पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 184 के अनुसार स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा की कथा का वर्णन इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
द्रुपद द्वारा स्वयंवर की घोषणा
राजा द्रुपद के मन में सदा यही इच्छा रहती थी कि मैं पाण्डुनन्दन अर्जुन के साथ द्रौपदी का ब्याह करुं। परंतु वे अपने इस मनोभाव को किसी पर प्रकट नहीं करते थे। भरतवंशी जनमेजय! पाञ्चाल नरेश ने कुन्तीकुमार अर्जुन को खोज निकालने की इच्छा से एक ऐसा द्दढ़ धनुष बनवाया, जिसे दूसरा कोई झुका भी न सके। राजा ने एक कृत्रिम आकाश-यन्त्र भी बनवाया, (जो तीव्र वेग से आकाश में घूमता रहता था)। उस यन्त्र के छिद्र के ऊपर उन्होंने उसी के बराबर का लक्ष्य तैयार कराकर रखवा दिया। (इसके बाद उन्होंने यह घोषणा करा दी)। द्रुपद ने घोषणा की- जो वीर इस धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाकर इन प्रस्तुत बाणों द्वारा ही यन्त्र के छेद के भीतर से इसे लांघकर लक्ष्यवेध करेगा, वही मेरी पुत्री को प्राप्त कर सकेगा।[1]
स्वयंवर में आये हुए राजाओं व ऋषियों का स्वागत
वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार राजा द्रुपद ने जब स्वयंवर की घोषणा करा दी, तब उसे सुनकर सब राजा वहाँ उनकी राजधानी में एकत्र होने लगे। बहुत से महात्मा ऋषि-मुनि भी स्वयंवर देखने के लिये आये। राजन्! दुर्योधन आदि कुरुवंशी भी कर्ण के साथ वहाँ आये थे। भिन्न–भिन्न देशों से कितने ही महाभाग ब्राह्मणों ने भी पदार्पण किया था। महामना राजा द्रुपद ने (वहाँ पधारे हुए) नरपतियों का भलीभाँति स्वागत सत्कार एंव सेवा-पूजा की। तत्पश्चात् वे सभी नरेश स्वयंवर देखने की इच्छा से वहाँ रखे हुए मञ्चों पर बैठे। उस नगर के समस्त निवासी भी यथास्थान आकर बैठ गये। उन सबका कोलाहल क्षुब्ध हुए समुद्र के भयंकर गर्जन के समान सुनायी पड़ता था। वहाँ की बैठक शिशुमार की आकृति में सजायी गयी थी।[1]
स्वयंवर सभा का भव्य वर्णन
शिशुमार के शिरोभाग में सब राजा अपने-अपने मञ्चों पर बैठे थे। नगर से ईशानकोण में सुन्दर एवं समतल भूमि पर स्वयंवर सभा का रंगमण्डप सजाया गया था, जो सब ओर से सुन्दर भवनों द्वारा घिरा होने के कारण बड़ी शोभा पा रहा था।। उसके सब ओर चहारदीवारी और खाई बनी थीं। अनेक फाटक और दरवाजे उस मण्डप की शोभा बढ़ा रहे थे। विचित्र चंदोंवे से उस सभा भवन को सब ओर से सजाया गया था।[1] वहाँ सैकड़ो प्रकार के बाजे बज रहे थे। बहुमूल्य अगुरु धूप की सुगन्ध चारों ओर फैल रही थी। फर्श पर चन्दन के जल का छिड़ किया गया था। सब ओर फूलों की मालाएं और हार टंगे थे, जिसमें वहाँ की शोभा बहुत बढ़ गयी थी।। उस रंगमण्डप के चारों ओर कैलास शिखर के समान ऊंचे और श्वेत रंग के गगनचुम्बी महल बने हुए थे। उन्हें भीतर से सोने के जालीदार पर्दों और झालरों से सजाया गया था। वहाँ ओर दीवारों में मणि एवं रत्न जड़े गये थे। उत्तम सुखपूर्वक चढ़ने योग्य सीढ़ियां बनी थी। बड़े-बड़े आसन और बिछावन आदि बिछाये गये थे। अनेक प्रकार की मालाएं और हार उन भवनों की शोभा बढ़ा रहे थे। अगुरु की सुगन्ध छा रही थी। वे इस और चन्द्रमा की किरणों के समान श्वेत दिखायी देते थे। उनके भीतर से निकली हुई धूप की सुगन्ध चारों ओर एक योजन-तक फैल रही थी। उन महलों में सैकड़ों दरवाजे थे। उनके भीतर आने-जाने के लिये बिल्कुल रोक-टोक नहीं थी और वे भाँति-भाँति की शय्याओं तथा आसनों से सुशोभित थे। उनकी दीवारों को अनेक प्रकार की धातुओं के रंगों से रंगा गया था। अत: वे राजमहल हिमालय के बहुरंगे शिखरों के समान सुशोभित हो रहे थे। उन्हीं सतमहले मकानों या विमानों में, जो अनेक प्रकार के बने हुए थे, सब राजा लोग परस्पर एक दूसरे से होड़ रखते हुए सुन्दर-से-सुन्दर श्रृंगार धारण करके बैठे। नगर और जनपद के लोगों ने जब देखा कि उक्त विमानों में बहुमूल्य मञ्चों के ऊपर महान् बल और पराक्रम से सम्पन्न परम सौभाग्यशाली, कालागुरु से विभूषित, महान् कृपाग्र साद से युक्त, ब्राह्मणभक्त, अपने-अपने राष्ट्र के रक्षक और शुभ पुण्यकर्मों के प्रभाव से सम्पूर्ण जगत् के प्रिय श्रेष्ठ नरपतिगण आकर बैठे गये हैं, तप राजकुमारी द्रौपदी के दर्शन का लाभ लेने के लिये वे भी सब ओर सुख-पूर्वक जा बैठे। वे पाण्डव भी पाञ्चालनरेश की उस सर्वोत्तम समृद्धि का अवलोकन करते हुए ब्राह्मणों के साथ उन्हीं की पंगशक्ति में बैठे थे। राजन्! नगर में बहुत दिनों से लोगों की भीड़ बह रही थी। राजसमाज के द्वारा प्रचुर धन रत्नों का दान किया जा रहा था। बहुतेरे नट और नर्तक अपनी कला दिखाकर उस समाज को शोभा बढ़ा रहे थे।[2]-
धृष्टद्युम्न की घोषणा
सोलहवें दिन अत्यन्त मनोहर समाज जुटा। भरतश्रेष्ठ! उसी दिन स्नान करके सुन्दर वस्त्र और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हो हाथों में सोने की बनी हुई कामदार जयमाला लिये द्रुपदराजकुमारी उस रंग भूमि में उतरी। तब सोमकवंशी क्षत्रियों के पवित्र एवं मन्त्रज्ञ ब्राह्मण पुरोहित ने अग्निवेदी के चारों ओर कुशा बिछाकर वेदोक्त विधि के अनुसार प्रज्वलित अग्नि में घी की आहुति डाली। इस प्रकार अग्रिदेव को तृप्त करके ब्राह्मणों को स्वस्तिवाचन कराकर चारों ओर बजनेवाले सब प्रकार के बाजे बंद करा दिये गये। महाराज! बाजों की आवाज बंद हो जाने पर जब स्वयंवर सभा में सन्नाटा छा गया, तब विधि के अनुसार धृष्टद्युम्न द्रौपदी को (साथ) लेकर रंगमण्डप के बीच में खड़ा हो मेघ और दुन्दुभि के समान स्वर तथा मेघगर्जन की सी गम्भीर वाणी में यह अर्थयुक्त उत्तम एवं मधुर वचन बोला-। यहाँ आये हुए भूपालगण! आप लोग (ध्यान देकर) मेरी बात सुनें। यह धनुष हैं, ये बाण हैं और यह निशाना है। आप लोग आकाश में छोड़े हुए पांच पैने बाणों द्वारा उस यन्त्र के छेद से लक्ष्य को बेधकर गिरा दें। मैं सच कहता हूँ , झूठ नहीं बोलता-जो उत्तम कुल, सुन्दर रुप और श्रेष्ठ बल से सम्पन्न वीर यह महान् कर्म कर दिखायेगा, आज यह मेरी बहिन कृष्णा उसी की धर्मपत्नी होगी।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 महाभारत आदि पर्व अध्याय 184 श्लोक 1-17
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 184 श्लोक 18-37
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| कर्ण का रंगभूमि में प्रवेश तथा राज्याभिषेक
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| द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण
| अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना
| द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना
| युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक
| पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता
| कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश
जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता
| दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव
| धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा
| दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना
| पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश
| वारणावत में पाण्डवों का स्वागत
| लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत
| विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण
| लाक्षागृह का दाह
| विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना
| हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश
| कुन्ती के लिए भीम का जल लाना
| माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना
| भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध
| हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना
| भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध
| युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना
| हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना
| भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन
| घटोत्कच की उत्पत्ति
| पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत
| ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार
| ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना
| ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन
| कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना
| कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना
| कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत
| भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव
| भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना
| भीम और वकासुर का युद्ध
| वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना
| द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत
| द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म
| कुन्ती का पांचाल देश में जाना
| व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना
| पाण्डवों की पांचाल यात्रा
| अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता
| राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना
| तपती और संवरण की बातचीत
| वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति
| गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना
| वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव
| शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना
| कल्माषपाद का शाप से उद्धार
| वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति
| शक्ति पुत्र पराशर का जन्म
| पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण
| और्व और पितरों की बातचीत
| पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति
| कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप
| पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत
| ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना
| स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
| धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना
| राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना
| अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना
| भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा
| कृष्ण-बलराम का वार्तालाप
| अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय
| द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना
| कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत
| पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह
| श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट
| धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना
| द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना
| पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान
| द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन
| द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार
| व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना
| द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना
| द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह
| कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता
| धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा
| धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय
| पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति
| भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह
| द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति
| विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन
| धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना
| पाण्डवों का हस्तिनापुर आना
| इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण
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| सुन्द-उपसुन्द की तपस्या
| सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय
| तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान
| तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई
| तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान
| पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
अर्जुन वनवास पर्व
अर्जुन द्वारा गोधन की रक्षा के लिए नियम-भंग
| अर्जुन का गंगाद्वार में रुकना एवं उलूपी से मिलन
| अर्जुन का मणिपूर में चित्रांगदा से पाणिग्रहण
| अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का उद्धार
| वर्गा की आत्मकथा
| अर्जुन का प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण से मिलना
सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना
| यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह
| अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना
| द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता
| अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना
| राजा श्वेतकि की कथा
| अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना
| अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना
| खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा
| देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा
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| जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद
| शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना
| मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना
| इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान
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