कुन्ती द्वारा सूर्यदेव का आवाहन एवं कर्ण का जन्म

महाभारत आदि पर्व के ‘सम्भव पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 110 के अनुसार कुन्ती द्वारा सूर्यदेव का आवाहन एवं कर्ण का जन्म का वर्णन इस प्रकार है[1]-

सूर्यदेव बोले - शुभे मैं यह सब जानता हूँ कि दुर्वासा ने तुम्‍हें वर दिया है। तुम भय छोड़कर यहाँ मेरे साथ समागम करो। शुभे मेरा दर्शन अमोघ है और तुमने मेरा आवाहन किया है। भीरु यदि यह आवाहन व्‍यर्थ हुआ, तो भी नि:संदेह तुम्‍हें बड़ा दोष लगेगा।

वैशम्पायन जी कहते हैं - भारत भगवान सूर्य ने कुन्‍ती को समझाते हएु इस तरह की बहुत-सी बातें कहीं; किंतु मैं अभी कुमारी कन्‍या हूं, यह सोचकर सुन्‍दरी कुन्‍ती ने उनसे समागम की इच्‍छा नहीं की। यशस्विनी कुन्‍ती भाई-बन्‍धुओं में बदनामी फैलने के डर से भी डरी हुई थी और नारी सुलभ लज्जा से भी वह विवश थी। भरतश्रेष्ठ उस समय सूर्यदेव ने पुन: उससे कहा।[1] ‘सुन्‍दर मुख एवं सुन्‍दर भौहों वाली राजकुमारी तुम्‍हारे लिये जैसे पुत्र का निर्माण होगा, वह सुनो- शुचिस्मिते वह माता आदिति के दिये हुए दिव्‍य कुण्‍डलों और मेरे कवच को धारण किये हुए उत्‍पन्न होगा। उसका वह कवच किन्‍हीं अस्त्र-शस्त्रों से टूट न सकेगा। उसके पास कोई भी वस्‍तु ब्राह्मणों के लिये अदेय न होगी। मेरे कहने पर भी वह कभी अयोग्‍य कार्य या विचार को अपने मन में स्‍थान न देगा। ब्राह्मणों के याचना करने पर वह उन्‍हें सब प्रकार की वस्‍तुऐं देगा ही। साथ ही वह बड़ा स्‍वाभिमानी होगा। ‘रानी मेरी कृपा से तुम्‍हें दोष भी नहीं लगेगा।’ कुन्ति-राजकुमारी कुन्‍ती से यों कहकर प्रकाश और गरमी उत्‍पन्न करने वाले भगवान सूर्य ने उसके साथ समागम किया इससे उसी समय एक वीर पुत्र उत्‍पन्न हुआ, जो सम्‍पूर्ण शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ था। उसने जन्‍म से ही कवच पहन रखा था और वह देव कुमार के समान तेजस्‍वी तथा शोभा सम्‍पन्न था। जन्‍म के साथ ही कवच धारण किये उस बालक का मुख जन्‍म जात कुण्‍डली में प्रकाशित हो रहा था। इस प्रकार कर्ण नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ, जो सब लोकों में विख्‍यात है। उत्तम प्रकाश वाले भगवान सूर्य ने कुन्‍ती को पुन: कन्‍यात्‍व प्रदान किया। तत्‍पश्चात् तपने वालों में श्रेष्ठ भगवान सूर्य देवलोक में चले गये। उस नवजात कुमार को देखकर वृष्णिवंश की कन्‍या कुन्‍ती के हृदय में बड़ा दु:ख हुआ। उसने एकाग्रचित्त से विचार किया कि अब क्‍या करने से अच्‍छा परिणाम निकलेगा। उस समय कुटुम्‍बीजनों के भय से अपने उस अनुचित कृत्‍य को छिपाती हुई कुन्‍ती ने महाबली कुमार कर्ण को जल में छोड़ दिया। जल में छोड़े हुए उस नवजात शिशु को महायशस्‍वी सूतपुत्र अधिरथ ने, जिसकी पत्नी का नाम राधा था, ले लिया। उसने और उसकी पत्नी ने उस बालक को अपना पुत्र बना लिया। उन दम्‍पति ने उस बालक का नामकरण इस प्रकार किया; यह वसु (कवच-कुण्‍डलादि धन) के साथ उत्‍पन्न हुआ है, इसलिये वसुषेण नाम से प्रसिद्ध हो। वह बलवान बालक बड़े होने के साथ ही सब प्रकार की अस्त्रविद्या में निपुण हुआ। पराक्रमी कर्ण प्रात: काल से लेकर जब तक सूर्य पृष्ठभाग की ओर न चले जाते, सूर्योपस्‍थान करता रहता था। उस समय मन्‍त्र जप में लगे हुए बुद्धिमान वीर कर्ण के लिये इस पृथ्‍वी पर कोई ऐसी वस्‍तु नहीं थी, जिसे वह ब्राह्मणों के मांगने पर न दे सके। किसी समय की बात है, सूर्यदेव ने ब्राह्मण का रुप धारण करके कर्ण को स्‍वप्न में दर्शन दिया और इस प्रकार कहा- ‘वीर मेरी बात सुनो- आज की रात बीत जाने पर सबेरा होते ही इन्‍द्र तुम्‍हारे पास आयेंगे। उस समय वे ब्राह्मण वेष में होंगे। यहाँ आकर इन्‍द्र यदि तुम से भिक्षा मांगे तो उन्‍हें देना मत। उन्‍होंने तुम्‍हारे कवच और कुण्‍डलों का अपहरण करने का निश्चय किया है। अत: मैं तुम्‍हें सचेत किये देता हूँ। तुम मेरी यह बात याद रखना।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 110 श्लोक 1-16
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 110 श्लोक 17-27

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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
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स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
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धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
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