मरिचि आदि महर्षियों तथा अदिति आदि दक्ष कन्याओं के वंश का विवरण

दानवों के पृथ्वी पर जन्म लेने से और पृथ्वी पर अत्याचार फैलाने के कारण पृथ्वी को ब्रह्मा जी की शरण में जाना पड़ा, तब उन्होंने पृथ्वी की रक्षा व दानवों के संहार के लिये इन्द्र सहित सभी देवताओं को अपने अंश के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेकर दानवों के विनाश के लिये आदेश दिया। तब इन्द्र सहित सभी देवतागण महर्षियों व राजर्षियों के वंश में जन्म लेने के लिये स्वर्ग से धरती पर अवतीर्ण हुये जिसका विवरण महाभारत आदि पर्व के ‘सम्भवपर्व’ के अंतर्गत अध्याय 65 के अनुसार इस प्रकार है[1]- वैशम्पायनजी कहते हैं - राजन्! देवताओं सहित इन्द्र ने भगवान विष्णु के साथ स्वर्ग एवं बैकुण्ठ से पृथ्वी पर अंशतः अवतार ग्रहण करने के सम्बन्ध में कुछ सलाह की। तत्पश्‍चात सभी देवताओं को तदनुसार कार्य करने के लिये आदेश देकर वे भगवान नारायण के निवास स्थान बैकुण्ठ धाम से पुनः चले आये। तब देवता लोग सम्पूर्ण लोकों के हित तथा राक्षसों के विनाश के लिये स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर क्रमश: अवतीर्ण होने लगे। नृपश्रेष्ठ! वे देवगण अपनी इच्छा के अनुसार ब्रह्मर्षियों अथवा राजर्षियों के वंश में उत्पन्न हुए। वे दानव, राक्षस, दुष्ट गन्धर्व, सर्प तथा अनान्य मनुष्य भक्षी जीवों का बार-बार संहार करने लगे। भरतश्रेष्ठ! वे बचपन में भी इतने बलवान थे कि दानव, राक्षस, गन्धर्व तथा सर्प उनका बाल बांका तक नहीं कर पाते थे।
जनमेजय बोले- भगवन्! मैं देवता, दानव समुदाय, गन्धर्व, अप्सरा, मनुष्य, अक्ष, राक्षस तथा सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति यर्थाथ रूप से सुनना चाहता हूँ। आप कृपा करके आरम्भ से ही इन सबकी उत्पत्ति का यथावत वर्णन कीजिये। वैशम्पायनजी ने कहा- अच्छा, मैं स्वयंभू भगवान ब्रह्मा एवं नारायण को नमस्कार करके तुमसे देवता आदि सम्पूर्ण लोगों की उत्पत्ति और नाश का यथार्थ वर्णन करता हूँ। ब्रह्माजी के मानस पुत्र छः महर्षि विख्यात हैं- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्थ्य, पुलह और क्रतु। मरीचि के पुत्र कश्‍यप थे और कश्‍यप से ही यह समस्त प्रजाऐं उत्पन्न हुई हैं। (ब्रह्माजी के एक पुत्र दक्ष भी हैं) प्रजापति दक्ष के परम सौभाग्शालिनी तेरह कन्याऐं थीं। नरश्रेष्ठ उनके नाम इस प्रकार हैं- अदिति, दिति, दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा (क्रूरा), प्राधा, विश्वा, विनता, कपिला, मुनि और कद्रु। भारत! ये सभी दक्ष की कन्याऐं हैं। इनके बाल पराक्रम सम्पन्न पुत्र-पौत्रों की संख्या अनन्त है। अदिति के पुत्र बारह आदित्य हुए, जो लोकेश्‍वर हैं। भरतवंशी नरेश! उन सबके नाम तुम्हे बता रहा हूँ। धाता, मित्र, अर्यमा, इन्द्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, दवे सविता, ग्यारहवें त्वष्टा और बारहवें विष्णु कहे जाते हैं। इन सब आदित्यों में विष्णु छोटे हैं; किन्तु गुणों में वे सबसे बढकर हैं। अदिति का एक ही पुत्र हिरण्युकशिपु अपने नाम से विख्यात हुआ। उस महामना दैत्य के पांच पुत्र थे।
उन पांचों में प्रथम का नाम प्रहलाद है। उससे छोटे को संगहलाद कहते हैं। तीसरे का नाम अनुहलाद उसके बाद चौथे शिवि और पांचवे बाष्कल हैं। भारत! प्रह्लाद के तीन पुत्र हुए जो सर्वत्र विख्यात हैं। उनके नाम ये हैं- विरोचन, कुंभ और निकुंभ। विरोचन के एक ही पुत्र हुआ, जो महाप्रतापी बलि के नाम से प्रसिद्ध है। बलि का विश्‍वविख्यात पुत्र बाण नामक महान असुर है। जिसे सब लोग भगवान शंकर के पार्षद् श्रीमान् महाकाल के नाम से जानते हैं। भारत! दनु के चौंतीस पुत्र हुए जो सर्वत्र विख्यात हैं। उनमें महायशस्वी राजा विचित्ति सबसे बड़ा था। उके बाद शम्बर, नमुचि, पुलोमा, असिलोमा, केषी, दुर्जय, अयःशिरा, अश्वशिरा, पराक्रमी, अश्‍वषंक, गगनमूर्धा, वेगवान्, केतुमान्, स्वर्भानु, अश्‍व, अश्‍वपति, वृषपर्वा, अजक, अश्वग्रीव, सूक्ष्म, महाबली तुहुण्ड, इषुपाद, एकचक्र, विरू, पाक्ष, हर, अहर, निचन्द्र, निकुम्भ, कुपट, कपट, शरभ, शलभ, सूर्य और चन्द्रमा हैं। ये दनु के वंश में विख्यात दानव बताये गये हैं।

दानववंश का विवरण

देवताओं में जो सूर्य और चन्द्रमा माने गये हैं, वे दूसरे हैं और प्रधान दानवों में सूर्य तथा चन्द्रमा दूसरे हैं। महाराज! ये विख्यात दानववंश कहे गये हैं, जो बड़े धैर्यवान् और महाबलवान हुए हैं। दनु के पुत्रों में निम्नांकित दानवों के दस कुल बहुत प्रसिद्ध हैं। एकाक्ष, वीर मृतपा, प्रलम्ब, नरक, बातापी, शत्रुतपन, महान् असुर शठ, गविष्ठ, बनायु तथा दानव दीर्धजिहृ। भारत! इन सबके पुत्र-पौत्र असंख्य बताये गये हैं। सिंहिका ने राहु नाम के पुत्र को उत्पन्न किया, जो चन्द्रमा और सूर्य का मान-मर्दन करने वाला है। इसके सिवा सुचन्द्र, चन्द्रहर्ता तथा चन्द्रपमर्दन को भी उसी ने जन्म दिया। क्रूरा (क्रोधा) के क्रूर स्वभाव वाले असंख्य पुत्र-पौत्र उत्पन्न हुए। शत्रुओं का नाश करने वाला क्रूरकमा्र क्रोधवश नाम गण भी क्रूरा की ही संतान है। दनायु के असरों में श्रेष्ठ चार पुत्र हुए- विक्षर, बल, वीर और महान् असुर वृत्र। काला के विख्यात पुत्र अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने में कुशल और साक्षात् काल के समान भयंकर थे।
दानवों में उनकी बड़ी ख्याति थी। वे महान् पराक्रमी और शत्रुओं को संताप देने वाले थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- विनाशन, क्रोध, क्रोधहन्ता तथा क्रोधशत्रु। कालकेय नाम से विख्यात दूसरे-दूसरे असुर भी काल के ही पुत्र थे। असुरों के उपाध्याय (अध्यापक एवं पुरोहित) शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र थे। उन्हें उशना भी कहते हैं। उशना के चार पुत्र हुए, जो असुरों के पुरोहित थे। इनके अतिरिक्त त्वष्टाधर तथा अत्रि ये दो पुत्र और हुए, जो रौद्र कर्म करने और कराने वाले थे। उशना के सभी पुत्र सूर्य के समान तेजस्वी तथा ब्रह्मलोक को ही परम आश्रय मानने वाले थे। राजन्! मैंने पुराण जैसा सुन रक्खा है, उसके अनुसार तुमसे यह वेगशाली असुरों और देवताओं के वंश की उत्पत्ति का वृतान्त बताया है। महीपाल! इनकी जो संताने हैं, उन सबकी पूर्णरूप से गणना नहीं की जा सकती; क्योंकि वे सब अनन्त गुने हैं। ताक्ष्र्य, अरिष्ठनेमि, गरुड़, अरुण, आरूणि, तथा वारूणि-ये विनता के पुत्र कहे गये हैं। शेष, अनन्त, वासुकि, तक्षक, कूर्म और कुलिक आदि नागगण कद्रू के पुत्र कहलाते हैं। राजन्! भीमसेन, उग्रसेन, सुपर्ण, वरुण, गोपति, धृतराष्ट्र, सूर्यवर्चा , सत्यवाक, अर्कपर्ण, विख्यात प्रयुत, भीम, सर्वज्ञ और जितेन्द्रिय चित्ररथ, शालिशिरा , चौदहवें पर्जन्य, पंद्रहवें कलि और सोलहबें नारद- ये सब देवगन्धर्व जाति वाले सोलह पुत्र मुनि के गर्भ से उत्पन्न कहे गये हैं।

गन्धर्व वंश

भारत! इसके अतिरिक्त, अन्य बहुत-से वंशों की उत्पत्ति का वर्ण करता हूँ। प्राधा नाम वाली दक्ष कन्या ने अनवद्या, मनु, वंशा, असुरा, मार्गणप्रिया, अरूपा, सुभगा और भासी इन कन्याओं को उत्पन्न किया। सिद्व, पूर्ण, वर्हि, महायशस्वी पूर्णायु, ब्रह्मचारी, रतिगुण, सातवें सुपर्ण, आठवें विश्वावसु, नवे भानु ओर दसवें सुचन्द्र- ये दस देव-गन्धर्व भी प्राधा के ही पुत्र बताये गये हैं। इनके सिवा महाभाग देवी प्राधा ने पहले देवर्षि (कश्‍यप) के समागम से इन प्रसिद्ध अप्सराओं के शुभ लक्षण वाले समुदाय को उत्पन्न किया था। उनके नाम ये हैं- अलम्बुषा, मिश्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरुण, रक्षिता, रंभा, मनोरमा, केशिनी, सुबाहू, सुरता, सुरजा और सुप्रिया। अतिवाहु, सुप्रसिद्ध हाहा ओर हूहू तथा तुम्बुरु- ये चार श्रेष्ठ गन्धर्व भी प्रावा के ही पुत्र माने गये हैं। अमृत, ब्राह्मण, गौऐं गन्धर्व तथा अप्सराऐं- ये सब पुराण में कपिला की संतानें वतायी गयी हैं। राजन्! इस प्रकार मैंने तुम्हें सम्पूर्ण भूतों की उपत्पत्ति का वृतान्त वताया है। इसी तरह गन्धर्वो, अप्सराओं, नागों, सुपर्णों, रुद्रों मरूद्गणों, गौओं तथा श्रीसम्पन्न पुण्यकर्मा ब्राह्मणों के जन्म की कथा भलीभाँति कही है। यह प्रसंग आयु देने वाला, पुण्यमय, प्रशंसनीय था सुनने में सुखद है। मनुष्य को चाहिये कि वह दोषदृष्टि न रखकर सदा इसे सुने और सुनावे। जो ब्राह्मण और देवताओं के समीप महात्माओं की इस वंशावली का नियम पूर्वक पाठ करता है, वह प्रचुर संतान, सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्‍चात् उत्तम गति पाता है।
[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदि पर्व अध्याय 65 श्लोक 1-26
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 65 श्लोक 27-56

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पुरुवंश का वर्णन | पुरुवंश, भरतवंश एवं पाण्डुवंश की परम्परा का वर्णन | महाभिष को ब्रह्माजी का शाप | शापग्रस्त वसुओं के साथ गंगा की बातचीत | प्रतीक का गंगा को पुत्र वधू के रूप में स्वीकार करना | शान्तनु का जन्म एवं राज्याभिषेक | शान्तनु और गंगा का शर्तों के साथ विवाह | वसुओं का जन्म एवं शाप से उद्धार | भीष्म का जन्म | वसिष्ठ द्वारा वसुओं को शाप प्राप्त होने की कथा | शान्तनु के रूप, गुण और सदाचार की प्रशंसा | गंगाजी को सुशिक्षित पुत्र की प्राप्ति | देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा | सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद, विचित्रवीर्य की उत्पत्ति | शान्तनु और चित्रांगद का निधन | विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक | भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का हरण | भीष्म द्वारा सब राजाओं एवं शाल्व की पराजय | अम्बिका, अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह | विचित्रवीर्य का निधन | सत्यवती का भीष्म से राज्य-ग्रहण का आग्रह | भीष्म की सम्मति से सत्यवती द्वारा व्यास का आवाहन | सत्यवती की आज्ञा से व्यास को अम्बिका, अम्बालिका के गर्भ में संतानोत्पादन की स्वीकृति | व्यास द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र से धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर की उत्पत्ति | महर्षि माण्डव्य का शूली पर चढ़ाया जाना | माण्डव्य का धर्मराज को शाप देना | कुरुदेश की सर्वागीण उन्नति का दिग्दर्शन | धृतराष्ट्र का विवाह | कुन्ती को दुर्वासा से मंत्र की प्राप्ति | कुन्ती द्वारा सूर्यदेव का आवाहन एवं कर्ण का जन्म | कर्ण द्वारा इन्द्र को कवच-कुण्डलों का दान | कुन्ती द्वारा स्वयंवर में पाण्डु का वरण एवं विवाह | माद्री के साथ पाण्डु का विवाह | पाण्डु का पत्नियों सहित वन में निवास | विदुर का विवाह | धृतराष्ट्र के गांधारी से सौ पुत्र और एक पुत्री की उत्पत्ति | धृतराष्ट्र को सेवा करने वाली वैश्य जातीय युवती से युयुत्सु की प्राप्ति | दु:शला के जन्म की कथा | धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की नामावली | पाण्डु द्वारा मृगरूप धारी मुनि का वध | पाण्डु का अनुताप, संन्यास लेने का निश्चय | पाण्डु का पत्नियों के अनुरोध से वानप्रस्थ-आश्रम में प्रवेश | पाण्डु का कुन्ती को पुत्र-प्राप्ति का आदेश | कुन्ती का पाण्डु को भद्रा द्वारा पुत्र-प्राप्ति का कथन | पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती का पुत्रोत्पत्ति के लिए धर्मदेवता का आवाहन | युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की उत्पत्ति | नकुल और सहदेव की उत्पत्ति | पाण्डु पुत्रों का नामकरण संस्कार | पाण्डु की मृत्यु और माद्री का चितारोहण | ऋषियों का कुन्ती और पाण्डवों को लेकर हस्तिनापुर जाना | पाण्डु और माद्री की अस्थियों का दाह-संस्कार | पाण्डवों और धृतराष्ट्र पुत्रों की बालक्रीडाएँ | दुर्योधन का भीम को विष खिलाना | भीम का नागलोक में पहुँच आठ कुण्डों का दिव्य रस पान करना | भीम के न आने से कुन्ती की चिन्ता | नागलोक से भीम का आगमन | कृपाचार्य, द्रोण और अश्वत्थामा की उत्पत्ति | द्रोण को परशुराम से अस्त्र-शस्त्र की प्राप्ति | द्रोण का द्रुपद से तिरस्कृत हो हस्तिनापुर में आना | द्रोण की राजकुमारों से भेंट | भीष्म का द्रोण को सम्मानपूर्वक रखना | द्रोणाचार्य द्वारा राजकुमारों की शिक्षा | एकलव्य की गुरु-भक्ति | द्रोणाचार्य द्वारा शिष्यों की परीक्षा | अर्जुन द्वारा लक्ष्यवेध | द्रोण का ग्राह से छुटकारा | अर्जुन को ब्रह्मशिर अस्त्र की प्राप्ति | राजकुमारों का रंगभूमि में अस्त्र-कौशल दिखाना | भीम, दुर्योधन और अर्जुन द्वारा अस्त्र-कौशल का प्रदर्शन | कर्ण का रंगभूमि में प्रवेश तथा राज्याभिषेक | भीम द्वारा कर्ण का तिरस्कार और दुर्योधन द्वारा सम्मान | द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण | अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना | द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना | युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक | पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता | कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश
जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
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हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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