कश्यप का गरुड़ को पूर्व जन्म की कथा सुनाना

महाभारत आदि पर्व के आस्तीक पर्व के अंतर्गत अध्याय 29 के अनुसार कश्यप का गरुड़ को पूर्व जन्म की कथा सुनाने का वर्णन इस प्रकार है[1]-

निषादों का भक्षण करते-करते गरुड़ के मुख में एक ब्राह्मण भी घुस गये जैसे उन्हें यह पता चला उन्होंने शीघ्र ही ब्राह्मण को अपने मुख से निकलने को कहा तो ब्राह्मण ने कहा मेरे साथ मेरी भार्या जो कि एक निषादी है उसके भी निकाल दो तो गरुड़ ने दोनों को शीघ्र ही अपने मुख से निकाल दिया मुख से निकलने के बाद ब्राह्मण और उसकी भार्या उन्हें आर्शिवाद देकर वहाँ से चले गये।

कश्यप का गरुड़ से मिलना

भार्या सहित उस ब्राह्मण के निकल जाने पर वह पक्षिराज गरुड़ पंख फैलाकर मन के समान तीव्र वेग से आकाश में उड़े। तदनंतर उन्हें अपने पिता कश्यपजी का दर्शन हुआ। उनके पूछ्ने पर अमेयात्मा गरुड़ ने पिता से यथोचित कुशल समाचार कहा। महर्षि कश्यप उनसे इस प्रकार बोले। कश्यपजी ने पूछा - बेटा! तुम लोग कुशल से तो हो न? विशेषतः प्रतिदिन भोजन के सम्बन्ध में तुम्हें विशेष सुविधा है न? क्या मनुष्य लोक में तुम्हारे लिये पर्याप्त अन्न मिल जाता है? गरुड़ ने कहा - मेरी माता सदा कुशल से रहती हैं। मेरे भाई तथा मैं दोनों सकुशल हैं। परन्तु पिताजी! पर्याप्त भोजन के विषय में तो सदा मेरे लिये कुशल का अभाव ही है। मुझे सर्पों ने उत्तम अमृत लाने के लिये भेजा है। माता को दासीपन से छुटकारा दिलाने के लिय आज मैं निश्चय ही उस अमृत को लाऊँगा। भोजन के विषय में पूछने पर माता ने कहा - ‘निषादों का भक्षण करो, परन्तु हजारों निषादों को खा लेने पर भी मुझे तृप्ति नहीं हुई है।' अत: भगवान! आप मेरे लिये कोई दूसरा भोजन बताइये। प्रभो! वह भोजन ऐसा हो जिसे खाकर मैं अमृत लाने में समर्थ हो सकूँ। मेरी भूख- प्यास को मिटा देने के लिये आप पर्याप्त भोजन बताइये।'

पूर्व जन्म कथा

कश्यपजी बोले--बेटा! यह महान पुण्यदायक सरोवर है, जो देवलोक में भी विख्यात है। उसमें एक हाथी नीचे को मुँह किये सदा सूँड से पकड़कर एक कछुए को खींचता रहता है। वह कछुआ पूर्व जन्म में उसका बड़ा भाई था। दोनों में पूर्व जन्म का वैर चला आ रहा है। उनमें यह वैर क्यो और कैसे हुआ तथा उन दोनों के शरीर की लम्बाई चैड़ाई और ऊँचाई कितनी है, ये सारी बातें मैं ठीक-ठीक बता रहा हूँ। तुम ध्यान देकर सुनो। पूर्वकाल में विभावसु नाम से प्रसिद्ध एक महर्षि थे। वे स्वभाव के बड़े क्रोधी थे। उनके छोटे भाई का नाम था सुप्रतीक। वे भी बड़े तपस्वी थे। महामुनि सुप्रतीक। अपने धन को बड़े भाई के साथ एक जगह नहीं रखना चाहते थे। सुप्रतीक प्रतिदिन बँटबारे के लिये आग्रह करते ही रहते थे। तब एक दिन बड़े भाई विभावसु ने सुप्रतीक से कहा - ‘भाई! बहुत से मनुष्य मोहवश सदा धन का बँटबारा कर लेने की इच्छा रखते हैं। तदनन्तर हो जाने पर धन के मोह में फँसकर वे एक दूसर के विरोधी हो परस्पर क्रोध करने लगते हैं।
वे स्वार्थपरायण मूढ़ मनुष्य अपने धन के साथ जब अलग-अलग हो जाते हैं, तब उनकी यह अवस्था जानकर शत्रु भी मित्ररूप में आकर मिलते और उनमें भेद डालते रहते हैं। ‘दूसरे लोग, उनमें फूट हो गयी है, यह जानकर उनके छिद्र देखा करते हैं एवं छिद्र मिल जाने पर उनमें परस्पर वैर बढ़ाने के लिय स्वयं बीच में आ पड़ते हैं। इसलिये जो लोग अलग-अलग होकर आपस में फूट पैदा कर लेते हैं, उनका शीघ्र ही ऐसा विनाश हो जाता है, जिसकी कहीं तुलना नहीं है। ‘अतः साधु पुरुष भाईयों के बीच अलगाव या बंटवारे की प्रशंसा नहीं करते; क्योंकि इस प्रकार बँट जाने वाले भाई गुरुस्वरूप शास्त्र की उलंघनीय आज्ञा के अधीन नहीं रह जाते और एक- दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं।[2] ‘सुप्रतीक! तुम्हें वश में करना असम्भव हो रहा है और तुम भेद-भाव के कारण ही बँटबारा करके धन लेना चाहते हो, इसलिये तुम्हें हाथी की योनि में जन्म लेना पड़ेगा।' इस प्रकार शाप मिलने पर सुप्रतीक और विभावसु से कहा-‘तुम भी पानी के भीतर विचरने वाले कछुए होओगे।' इस प्रकार सुप्रतीक और विभावसु मुनि एक-दूसरे के शाप से हाथी और कछुए की योनि में पड़े हैं। धन के लिये उनके मन में मोह छा गया था।
रोष और लोभरूपी दोष के सम्बन्ध से उन दोनों को तिर्यक योनि में जाना पड़ा है। वे दोनों विशालकाय जन्तु पूर्व जन्म के वैर का अनुसरण करके अपनी विशालता और बल के घमण्ड में चूर हो एक दूसरे से द्वेष रखते हुए इस सरोवर में रहते हैं। इन दोनों में एक जो सुन्दर महान गजराज है, वह जब सरोवर के तट पर आता है, तब उसके चिंघाड़ने की आवाज सुनकर जल के भीतर शयन करने वाला विशालकाय कछुआ भी पानी से ऊपर आता है। उस समय वह सारे सरोवर को मथ डालता है। उसे देखते ही यह पराक्रमी हाथी अपनी सूँड़ लपेटे हुए जल में टूट पड़ता है तथा दाँत, सूँड़, पूँछ और पैरों के वेग से असंख्य मछलियों से भरे हुए समूचे सरोवर में हलचल मचा देता है। उस समय पराक्रमी कच्छप भी सिर उठाकर युद्ध के लिये निकट आ जाता है। हाथी का शरीर छः योजन ऊँचा और बारह योजना लंबा है। कछुआ तीन योजन ऊँचा और दस योजना गोल है। वे दोनों एक दूसरे को मारने की इच्छा से युद्ध के लिये मतवाले बने रहते हैं। तुम शीघ्र जाकर उन दोनों को भोजन के उपयोग में लाओ और अपने इस अभीष्ट कार्य का साधन करो। कछुआ महान मेघ-खण्ड के समान है और हार्थी भी महान पर्वत के समान भयंकर है। उन्हीं दोनों को खाकर अमृत ले आओ। उग्रश्रवाजी कहते हैं - शौनकजी! कश्यपजी गरुड़ से ऐसा कहकर उस समय उनके लिये मंगल मनाते हुए बोले-‘गरुड़! युद्ध में देवताओं के साथ लड़ते हुए तुम्हारा मंगल हो। ‘पक्षिप्रवर! भरा हुआ कलश, ब्राह्मण, गौएँ तथा और जो कुछ भी मागंलिक वस्तुएँ हैं, वे तुम्हारे लिये कल्याणकारी होगी।' [3]-

गरुड़ का कछुए और हाथी को पकड़ना

‘महाबली पक्षिराज! संग्राम में देवताओं के साथ युद्ध करते समय ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, पवित्र हविष्य, सम्पूर्ण रहस्य तथा सभी वेद तुम्हें बल प्रदान करें।’ पिता के ऐसा कहने पर गरुड़ उस सरोवर के निकट गये। उन्होंने देखा, सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल है और नाना प्रकार के पक्षी इसमें सब ओर चहचहा रहे हैं। तदनन्तर भयंकर वेगशाली अन्तरिक्षगामी गरुड़ ने पिता के वचन का स्मरण करके एक पंजे से हाथी को और दूसरे से कछुए को पकड़ लिया। फिर वे पक्षिराज आकाश में ऊँचे उड़ गये। उड़कर वे फिर उलम्बतीर्थ में जा पहुँचे। वहाँ (मेरू गिरिपर) बहुत से दिव्यवृ़क्ष अपनी सुवर्णमय शाखा प्रशाखाओं के साथ लहलहा रहे थे। जब गरुड़ उनके पास गये, तब उनके पंखों की वायु से आहत होकर वे सभी दिव्यवृ़क्ष इस भय से कम्पित हो उठे कि कहीं ये हमें तोड़ न डालें। गरुड़ रुचि के अनुसार फल देने वाले उन कल्य वृक्षों को काँपते देख अनुपम रूप-रंग तथा अंगों वाले दूसरे-दूसरे महावृक्षों की ओर चल दिये। उनकी शाखाएँ वैदूर्य मणि की थीं और वे सुवर्ण तथा रजतमय फलों से सुशोभित हो रहे थे। वे सभी महावृक्ष समुद्र के जल से अभिषिक्त होते रहते थे। वहीं एक बहुत बड़ा विशाल वट वृक्ष था। उसने मन के समान तीव्र वेग से आते हुए पक्षियों के सरदार गरुड़ से कहा। वटवृक्ष बोला - पक्षिराज! यह जो मेरी सौ योजन तक फैली हुई सबसे बड़ी शाखा है, इसी पर बैठकर तुम इस हाथी और कछुए को खा लो। तब पर्वत के समान विशाल, शरीर वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वेगशाली गरुड़ सहस्रों विहंगमों से सेवित उस महान वृक्ष को कम्पित करते हुए तुरन्त उस पर जा बैठे। बैठते ही अपने असह्म वेग से उन्होंने सघन पल्लवों से सुशोभित उस विशाल शाखा को तोड़ डाला।[4]-

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदि पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-18। ।
  2. कनिष्ठान पुत्रवत पश्येज्ज्येष्ठो भ्राता पितुः समः’ अर्थात ‘बड़ा भाई पिता के समान होता है। वह अपने छोटे भाईयों को पुत्र के समान देखे।’ यह शास्त्र की आज्ञा है। जिसमें फूट हो जाती है, वे पीछे इस आज्ञा का पालन नहीं कर पाते।
  3. महाभारत आदि पर्व अध्याय 29 श्लोक 19-34। ।
  4. महाभारत आदि पर्व अध्याय 29 श्लोक 35-44। ।

संबंधित लेख

महाभारत आदिपर्व में उल्लेखित कथाएँ


पर्वसंग्रह पर्व
समन्तपंचक क्षेत्र | अक्षोहिणी सेना | महाभारत में वर्णित पर्व
पौष्य पर्व
जनमेजय को सरमा का शाप | जनमेजय द्वारा सोमश्रवा का पुरोहित पद | आरुणी, उपमन्यु, वेद और उत्तंक की गुरुभक्ति | उत्तंक का सर्पयज्ञ
पौलोम पर्व
महर्षि च्यवन का जन्म | भृगु द्वारा अग्निदेव को शाप | अग्निदेव का अदृश्य होना | प्रमद्वरा का जन्म | प्रमद्वरा की सर्प के काटने से मृत्यु | प्रमद्वरा और रुरु का विवाह | रुरु-डुण्डुभ संवाद | डुण्डुभ की आत्मकथा | जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रुरु की जिज्ञासा
आस्तीक पर्व
पितरों के अनुरोध से जरत्कारु की विवाह स्वीकृति ‎ | जरत्कारू द्वारा वासुकि की बहिन का पाणिग्रहण | आस्तीक का जन्म | कद्रु-विनता को पुत्र प्राप्ति | मेरु पर्वत पर भगवान नारायण का समुद्र-मंथन के लिए आदेश | भगवान नारायण का मोहिनी रूप | देवासुर संग्राम | कद्रु और विनता की होड़ | कद्रु द्वारा अपने पुत्रों को शाप | नाग और उच्चैश्रवा | विनता का कद्रु की दासी होना | गरुड़ की उत्पत्ति | गरुड़ द्वारा अपने तेज और शरीर का संकोच | कद्रु द्वारा इंद्रदेव की स्तुति | गरुड़ का दास्यभाव | गरुड़ का अमृत के लिए जाना और निषादों का भक्षण | कश्यप का गरुड़ को पूर्व जन्म की कथा सुनाना | गरुड़ का कश्यप जी से मिलना | इन्द्र द्वारा वालखिल्यों का अपमान | अरुण-गरुड़ की उत्पत्ति | गरुड़ का देवताओं से युद्ध | गरुड़ का विष्णु से वर पाना | इन्द्र और गरुड़ की मित्रता | इन्द्र द्वारा अमृत अपहरण | शेषनाग की तपस्या | जरत्कारु का जरत्कारु मुनि के साथ विवाह | जरत्कारु की तपस्या | परीक्षित का उपाख्यान | श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को शाप | तक्षक नाग और कश्यप | जनमेजय का राज्यभिषेक और विवाह | जरत्कारु को पितरों के दर्शन | जरत्कारु का शर्त के साथ विवाह | जरत्कारु मुनि का नाग कन्या के साथ विवाह | परीक्षित के धर्ममय आचार | परीक्षित द्वारा शमीक मुनि का तिरस्कार | श्रृंगी ऋषि का परिक्षित को शाप | जनमेजय की प्रतिज्ञा | जनमेजय के सर्पयज्ञ का उपक्रम | सर्पयज्ञ के ऋत्विजों की नामावली | तक्षक का इंद्र की शरण में जाना | आस्तीक का सर्पयज्ञ में जाना | आस्तीक द्वारा यजमान, यज्ञ, ऋत्विज, अग्निदेव आदि की स्तुति | सर्पयज्ञ में दग्ध हुए सर्पों के नाम | आस्तीक का सर्पों से वर प्राप्त करना
अंशावतरण पर्व
महाभारत का उपक्रम जनमेजय के यज्ञ में व्यास का आगमन | व्यास का वैशम्पायन से महाभारत कथा सुनाने की कहना | कौरव-पाण्डवों में फूट और युद्ध होने का वृत्तांत | महाभारत की महत्ता | उपरिचर का चरित्र | सत्यवती, व्यास की संक्षिप्त जन्म कथा | ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति एवं वृद्धि | असुरों का जन्म और पृथ्वी का ब्रह्माजी की शरण में जाना | ब्रह्माजी का देवताओं को पृथ्वी पर जन्म लेने का आदेश
सम्भव पर्व
मरिचि आदि महर्षियों तथा अदिति आदि दक्ष कन्याओं के वंश का विवरण | महर्षियों तथा कश्यप-पत्नियों की संतान परंपरा का वर्णन | देवता और दैत्यों के अंशावतारों का दिग्दर्शन | दुष्यंत की राज्य-शासन क्षमता का वर्णन | दुष्यंत का शिकार के लिए वन में जाना | दुष्यंत का हिंसक वन-जन्तुओं का वध करना | तपोवन और कण्व के आश्रम का वर्णन | दुष्यंत का कण्व के आश्रम में प्रवेश | दुष्यंत-शकुन्तला वार्तालाप | शकुन्तला द्वारा अपने जन्म का कारण बताना | विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र द्वारा मेनका को भेजना | मेनका-विश्वामित्र का मिलन | कण्व द्वारा शकुन्तला का पालन-पोषण | शकुन्तला और दुष्यंत का गन्धर्व विवाह | कण्व द्वारा शकुन्तला विवाह का अनुमोदन | शकुन्तला को अद्भुत शक्तिशाली पुत्र की प्राप्ति | पुत्र सहित शकुन्तला का दुष्यंत के पास जाना | आकाशवाणी द्वारा शकुन्तला की शुद्धि का समर्थन | भरत का राज्याभिषेक | दक्ष, वैवस्वत मनु तथा उनके पुत्रों की उत्पत्ति | पुरुरवा, नहुष और ययाति के चरित्रों का वर्णन | कच का शुक्राचार्य-देवयानी की सेवा में सलंग्न होना | देवयानी का कच से पाणिग्रहण के लिए अनुरोध | देवयानी-शर्मिष्ठा का कलह | शर्मिष्ठा द्वारा कुएँ में गिरायी गयी देवयानी को ययाति का निकालना | देवयानी शुक्राचार्य से वार्तालाप | शुक्राचार्य द्वारा देवयानी को समझाना | शुक्राचार्य का वृषपर्वा को फटकारना | शर्मिष्ठा का दासी बनकर शुक्राचार्य-देवयानी को संतुष्ट करना | सखियों सहित देवयानी और शर्मिष्ठा का वन-विहार | ययाति और देवयानी का विवाह | ययाति से देवयानी को पुत्र प्राप्ति | ययाति-शर्मिष्ठा का एकान्त मिलन | देवयानी-शर्मिष्ठा संवाद | शुक्राचार्य का ययाति को शाप देना | ययाति का अपने पुत्रों से आग्रह | ययाति का अपने पुत्रों को शाप देना | ययाति का अपने पुत्र पुरु की युवावस्था लेना | ययाति का विषय सेवन एवं वैराग्य | ययाति द्वारा पुरु का राज्याभिषेक करके वन में जाना | ययाति की तपस्या | ययाति द्वारा पुरु के उपदेश की चर्चा करना | ययाति का स्वर्ग से पतन | ययाति और अष्टक का संवाद | अष्टक और ययाति का संवाद | ययाति और अष्टक का आश्रम-धर्म संबंधी संवाद | ययाति द्वारा दूसरों के पुण्यदान को अस्वीकार करना | ययाति का वसुमान और शिबि के प्रतिग्रह को अस्वीकार करना | ययाति का अष्टक के साथ स्वर्ग में जाना | पुरुवंश का वर्णन | पुरुवंश, भरतवंश एवं पाण्डुवंश की परम्परा का वर्णन | महाभिष को ब्रह्माजी का शाप | शापग्रस्त वसुओं के साथ गंगा की बातचीत | प्रतीक का गंगा को पुत्र वधू के रूप में स्वीकार करना | शान्तनु का जन्म एवं राज्याभिषेक | शान्तनु और गंगा का शर्तों के साथ विवाह | वसुओं का जन्म एवं शाप से उद्धार | भीष्म का जन्म | वसिष्ठ द्वारा वसुओं को शाप प्राप्त होने की कथा | शान्तनु के रूप, गुण और सदाचार की प्रशंसा | गंगाजी को सुशिक्षित पुत्र की प्राप्ति | देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा | सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद, विचित्रवीर्य की उत्पत्ति | शान्तनु और चित्रांगद का निधन | विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक | भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का हरण | भीष्म द्वारा सब राजाओं एवं शाल्व की पराजय | अम्बिका, अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह | विचित्रवीर्य का निधन | सत्यवती का भीष्म से राज्य-ग्रहण का आग्रह | भीष्म की सम्मति से सत्यवती द्वारा व्यास का आवाहन | सत्यवती की आज्ञा से व्यास को अम्बिका, अम्बालिका के गर्भ में संतानोत्पादन की स्वीकृति | व्यास द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र से धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर की उत्पत्ति | महर्षि माण्डव्य का शूली पर चढ़ाया जाना | माण्डव्य का धर्मराज को शाप देना | कुरुदेश की सर्वागीण उन्नति का दिग्दर्शन | धृतराष्ट्र का विवाह | कुन्ती को दुर्वासा से मंत्र की प्राप्ति | कुन्ती द्वारा सूर्यदेव का आवाहन एवं कर्ण का जन्म | कर्ण द्वारा इन्द्र को कवच-कुण्डलों का दान | कुन्ती द्वारा स्वयंवर में पाण्डु का वरण एवं विवाह | माद्री के साथ पाण्डु का विवाह | पाण्डु का पत्नियों सहित वन में निवास | विदुर का विवाह | धृतराष्ट्र के गांधारी से सौ पुत्र और एक पुत्री की उत्पत्ति | धृतराष्ट्र को सेवा करने वाली वैश्य जातीय युवती से युयुत्सु की प्राप्ति | दु:शला के जन्म की कथा | धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों की नामावली | पाण्डु द्वारा मृगरूप धारी मुनि का वध | पाण्डु का अनुताप, संन्यास लेने का निश्चय | पाण्डु का पत्नियों के अनुरोध से वानप्रस्थ-आश्रम में प्रवेश | पाण्डु का कुन्ती को पुत्र-प्राप्ति का आदेश | कुन्ती का पाण्डु को भद्रा द्वारा पुत्र-प्राप्ति का कथन | पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती का पुत्रोत्पत्ति के लिए धर्मदेवता का आवाहन | युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की उत्पत्ति | नकुल और सहदेव की उत्पत्ति | पाण्डु पुत्रों का नामकरण संस्कार | पाण्डु की मृत्यु और माद्री का चितारोहण | ऋषियों का कुन्ती और पाण्डवों को लेकर हस्तिनापुर जाना | पाण्डु और माद्री की अस्थियों का दाह-संस्कार | पाण्डवों और धृतराष्ट्र पुत्रों की बालक्रीडाएँ | दुर्योधन का भीम को विष खिलाना | भीम का नागलोक में पहुँच आठ कुण्डों का दिव्य रस पान करना | भीम के न आने से कुन्ती की चिन्ता | नागलोक से भीम का आगमन | कृपाचार्य, द्रोण और अश्वत्थामा की उत्पत्ति | द्रोण को परशुराम से अस्त्र-शस्त्र की प्राप्ति | द्रोण का द्रुपद से तिरस्कृत हो हस्तिनापुर में आना | द्रोण की राजकुमारों से भेंट | भीष्म का द्रोण को सम्मानपूर्वक रखना | द्रोणाचार्य द्वारा राजकुमारों की शिक्षा | एकलव्य की गुरु-भक्ति | द्रोणाचार्य द्वारा शिष्यों की परीक्षा | अर्जुन द्वारा लक्ष्यवेध | द्रोण का ग्राह से छुटकारा | अर्जुन को ब्रह्मशिर अस्त्र की प्राप्ति | राजकुमारों का रंगभूमि में अस्त्र-कौशल दिखाना | भीम, दुर्योधन और अर्जुन द्वारा अस्त्र-कौशल का प्रदर्शन | कर्ण का रंगभूमि में प्रवेश तथा राज्याभिषेक | भीम द्वारा कर्ण का तिरस्कार और दुर्योधन द्वारा सम्मान | द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण | अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना | द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना | युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक | पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता | कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश
जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
अर्जुन वनवास पर्व
अर्जुन द्वारा गोधन की रक्षा के लिए नियम-भंग | अर्जुन का गंगाद्वार में रुकना एवं उलूपी से मिलन | अर्जुन का मणिपूर में चित्रांगदा से पाणिग्रहण | अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का उद्धार | वर्गा की आत्मकथा | अर्जुन का प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण से मिलना
सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः